भोपाल।हाल ही में आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस में चिंता की लकीरें बढ़ा दी हैं. मध्यप्रदेश में डेढ़ साल में विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाने से युवा नेता निराश हैं. वे अपने विधानसभा क्षेत्रों तक सिमटे हैं. इन हालातों में कांग्रेस को मिशन 2023 को पार पाना बड़ी चुनौती हो गई है. 20 मार्च को कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को 2 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन कांग्रेस लगातार रसातल में जा रही है.
अधिकतर समय दिल्ली में रहते हैं कमलनाथ
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ का अधिकतर समय दिल्ली में गुजरता है. उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर भी चर्चाओं का दौर चला. उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें भी जोर पकड़ रही हैं. ऐसे में वह मध्यप्रदेश कांग्रेस को कम समय दे पा रहे हैं. वे दिल्ली में बैठकर प्रदेश कांग्रेस को चलाते हैं. कमलनाथ ने सभी जिम्मेदारियां एक दर्जन बुजुर्ग नेताओं को सौंप रखी हैं. प्रदेश में जमीन पर काम करने वाले और लोकप्रिय युवा नेताओं को जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा रही है. ऐसे में वे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में तक सिमट कर रह गए हैं.
केवल नाम के लिए प्रदेश प्रभारी
मार्च 2020 में कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता से विदाई के बाद अप्रैल 2020 में तत्कालीन प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को हटाकर मुकुल वासनिक को प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वासनिक को प्रदेश प्रभारी बनाए हुए 2 साल होने को है लेकिन वह चुनिंदा मौकों पर ही प्रदेश के दौरे पर आए हैं. मध्यप्रदेश से संबंधित ज्यादातर मामलों में उनका कोई लेना-देना नहीं रहता है.
हाशिए पर हैं सारे बड़ व छोटे नेता
पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष दोनों ही पदों का फिलहाल कमलनाथ ही आसीन हैं. इसको लेकर भी बयानबाजी का दौर चलता रहता है. नेतृत्व परिवर्तन की बात उठती तो है लेकिन होता कुछ नहीं है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव जैसे नेता हाशिए पर बने हुए हैं. ये नेता बीच-बीच में अपनी भड़ास सोशल मीडिया के जरिए निकालते रहते हैं. इसके साथ ही कांग्रेस की युवा दमदार नेता जीतू पटवारी, आदिवासी चेहरा उमंग सिंघार और युवा चेहरा जयवर्धन सिंह को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई है.