भोपाल। गेहूं और धान की खरीदी ने राज्य सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ा दिया है. प्रदेश सरकार इस वक्त आर्थिक संकट में है. सरकार पर 68 हजार करोड़ का कर्ज हो गया और इस पर प्रतिदिन 14 करोड़ रुपये का ब्याज लग रहा है. केंद्र से प्रतिपूर्ति राशि न मिलने के चलते यह कर्ज और बढ़ता जा रहा है. जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश में देश भर में सबसे ज्यादा राशन का स्टॉक हो गया है. गेहूं और धान की खरीद के मामले में बीते 10 साल में नागरिक आपूर्ति निगम और विपणन संघ पर बैंकों का कर्ज बढ़ता ही जा रहा है. दूसरी तरफ गोदामो में रखे अनाज को लेने में एफसीआई भी आनाकानी कर रहा है.
अनाज की बंपर खरीदी से कर्जदार हुआ मध्य प्रदेश क्या नीतियों ने बढ़ाया कर्ज?
आपको बता दें कि केंद्र सरकार हर साल गेहूं और धान की खरीद के लिए राज्यों की लिमिट तय करती है. इसी हिसाब से केंद्र राज्यों से अनाज उठाता है. दूसरी तरफ मध्य प्रदेश सरकार अपनी नीतियों के हिसाब से किसान का दाना-दाना खरीदती है. जिसका किसान को भुगतान किया जाता है. ऐसे में केंद्र सरकार अपनी लिमिट के अनाज का भुगतान तो करती है जबकि राज्य सरकार द्वारा की गई खरीद में से कुछ राशि प्रतिपूर्ति के तौर पर उसे केंद्र से दी जाती है. ज्यादा मात्रा में अनाज खरीदने से भुगतान की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है.
राज्य सरकार के गोदामो में 180 लाख मैट्रिक टन अनाज
दरअसल गेहूं और धान या दूसरे अनाज की खरीदी के लिए केंद्र सरकार एडवांस में राशि नहीं देती, बल्कि जब पीडीएस के लिए राज्य से स्टॉक उठाया जाता है तब उसकी राशि सब्सिडी के तौर पर दी जाती है. एफसीआई अगर इस अनाज को खरीदकर दूसरे प्रदेशों में भेजता है तो उसका पैसा राज्य को मिलता है. राज्य सरकार के पास इस समय प्रदेश के विभिन्न गोदामों में 180 लाख मैट्रिक टन गेहूं और धान रखा है. सरकार हर साल इन गोदामो का करोड़ों रुपए किराया भी चुकाती है. ऐसे में स्टॉक न बिकने और एफसीआई के स्टॉक उठाने में आनाकानी करने से अनाज गोदामो में ही रखा रहता है और इनका किराया लगातार बढ़ता रहता है. केंद्र सरकार राज्यों को कर्ज के रूप में किसानों से गेहूं और धान का उपार्जन करने के लिए निर्धारित राशि देती है, जबकि बाकी का भुगतान जैसे किसानों की उपज, समितियों के परिवहन और गोदामो का किराया राज्य सरकार को देना होता है.
अनाज की खरीदी के लिए बैंकों से कर्ज लेती है सरकार
प्रदेश में हर साल सवा लाख मैट्रिक टन से अधिक गेहूं खरीदा जा रहा है, इसके लिए सरकार को बैंकों और अन्य निजी संस्थाओं से बड़ा कर्ज लेना पड़ता है. खरीदी के बाद राज्य सरकार केंद्र सरकार से प्रतिपूर्ति राशि मांगती है, लेकिन में केंद्र यह कहकर पेंच फंसा देता है कि पहले पुराने खाते क्लियर किए जाएं. केंद्र ने अभी तक साल 2012-13 से गेहूं और साल 2010-11 से धान खरीदी के खाते क्लियर नहीं किए हैं. ईटीवी ने जब इस मामले में नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष प्रदुम सिंह लोधी से बात की तो उन्हें मामले की जानकारी ही नहीं थी, उन्होंने कहा कि वे अभी इस मामले को दिखवाते हैं.
लालफीताशाही से बढ़ा कर्ज - कांग्रेस
कांग्रेस ने राज्य सरकार पर बढ़ रहे कर्ज को सरकारी लालफीताशाही और कमीशन बाजी का प्रमाण बताया है. कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि सरकार ने गेहूं और धान की खरीदी तो पर्याप्त मात्रा में कर ली लेकिन, अब हालत ये है कि सरकार गोदामों का किराया तक नहीं दे पा रही है. इसी लालफीताशाही की वजह से राज्य सरकार के 68 हजार करोड रुपए केंद्र पर फंसे हुए हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्या वजह है कि राज्य सरकार अपने हक का पैसा भी केंद्र से नहीं मांग पा रही है.
नीलामी से होगी नुकसान की भरपाई
बीते हफ्ते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खाद्य विभाग के अधिकारियों ने गेहूं और धान की खरीदी, गोदामो में रखे अनाज और कर्ज की स्थिति जानने के लिए बैठक भी की थी. इसमें बताया गया कि प्रदेश में समर्थन मूल्य पर खरीद बढ़ती जा रही है.साल 2019 में 72 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, जिसमें से साढ़े छह लाख टन गेहूं केंद्र सरकार ने सेंट्रल पूल में लेने से इन्कार कर दिया. इस गेहूं को अब नीलाम किया जा रहा है ताकि फंसी हुई लागत निकल आए. सरकार को उम्मीद है कि निविदा के जरिए 1590 रुपए प्रति क्विंटल के रेट पर इसे बेच दिया जाए. इसके अलावा साल 2020-21 में खरीदा गया लगभग 70 लाख टन गेहूं अभी गोदामों में ही रखा हुआ है. इसके अलावा गोदामों में रखा जो अनाज खराब हो जाता है तो उसका वित्तीय भार भी राज्य के ही ऊपर आता है.
सेंट्रल पूल में नहीं लिया गया 70 लाख टन गेहूं
भारतीय खाद्य निगम जब सेंट्रल पूल में अनाज लेता है तब उसका भुगतान राज्य को किया जाता है. राज्य के गोदामों में अभी साल 2019, 2020 और 2021 में खरीदा गया लगभग 70 लाख टन गेहूं रखा हुआ है. केंद्र जब तक इसे सेंट्रल पूल में नहीं लेता, तब तक इसका भुगतान नहीं होगा. इसी तरह सार्वजनिक वितरण प्रणाली में वितरित होने वाले खाद्यान्न् का भुगतान भी समय पर नहीं हो रहा है.