भोपाल। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के नशा मुक्ति अभियान को लेकर मुख्यमंत्री ने बयान दिया है. उन्होनें साफ किया है कि नई आबकारी नीति ऐसी होगी, जिससे शराब खोरी को लेकर बढ़ावा न मिले. इसका मतलब साफ है कि फिलहाल प्रदेश में पूर्ण शराब बंदी को लेकर सरकार की न तो कोई योजना है और न ही ऐसा इरादा. 3 लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज तले दबी सरकार शराब बंदी कर राजस्व का बड़ा रास्ता बंद नहीं करना चाहती. लिकर से प्रदेश सरकार को करीब साढ़े 12 हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है.
क्या वादा भूल गए शिवराज:शराबबंदी का सरकार का इरादा न देखते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान के पुराने वादे पर सवाल उठने लगे हैं.शिवराज सिंह ने 2017 में वादा किया था कि वे प्रदेश में क्रमवार शराब बंदी करेंगे, लेकिन 2022 के आते-आते क्या सरकार इसे भूल चुकी है या फिर राजस्व की मजबूरी देखते हुए इससे हाथ पीछे खींच लिए हैं. शराब से 12 हजार करोड़ का राजस्व वसूलने वाली मध्य प्रदेश सरकार राज्य की माली हालत को देखते हुए पूर्ण शराबबंदी के पझ में नहीं है.
इसलिए तैयार नहीं सरकार:मध्यप्रदेश सरकार राज्य की माली हालत को देखते हुए सरकार पूर्व शराबबंदी के पक्ष में नहीं है.
- प्रदेश सरकार का कर्ज 3 लाख करोड़ से ज्यादा पहुंच चुका है. विपक्ष इसे लेकर सरकार पर लगातार निशाना साधता रहता है.
- सरकार के खर्चे और कर्ज को देखते हुए सरकार शराबबंदी करने का रिस्क नहीं लेना चाहती.
- राज्य के राजस्व संग्रहण में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी आबकारी विभाग से ही होती है. शराब से सरकार को हर साल करीब साढ़े 12 हजार करोड़ रुपए की आय होती है. शराबबंदी की स्थिति में आय का दूसरा विकल्प नहीं.
- पिछले पांच सालों के आंकड़ों को देखें तो सरकार को शराब से होने वाली आमदानी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है.
- साल 2016 में सरकार को शराब से 7521 करोड़ रुपए राजस्व आया था. 2017 में 8338 करोड, 2018 में 9526 करोड़, 2019 में 10778 करोड़, 2020 में 11997 करोड़ और 2021 में करीब 12 हजार करोड़ से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ है.
- सरकार के पास राजस्व के विकल्प बेहद सीमित हैं. ऐसे में शराबबंदी लागू कर सरकार अतिरिक्त आर्थिक दवाब झेलने को तैयार नहीं है.
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