भोपाल। ऋषि नाम था पांच बरस के उस बच्चे का, तेरह साल बाद वो भी वोट देता, लेकिन सियासी दलों की निगाह से देखिए तो नेता की गोदी में चढ़के फोटो खिंचवाने से ज्यादा ये बच्चा किस इस्तेमाल में आता. फिक्र तो धरती के उस भगवान को भी नहीं थी जिसके भरोसे अपनी मां की गोद में वो अस्पताल चला आया. डॉक्टर साहब का इंतज़ार उसने आखिरी सांस तक किया. उल्टी दस्त से बेहाल होकर आया था अपनी मां के साथ, लेकिन क्या किया जाए कि जब उसकी तकदीर में डॉक्टर लिखे ही नहीं थे. तो इल्ज़ाम सिस्टम के सिर क्यों दिया जाए भला. ऐसे में सवाल ये हैं कि क्या ये मासूम इतनी ही जिंदगी लिखाकर लाया था, या फिर उसका जीवन लाचार स्वास्थ्य सिस्टम और लापरवाह डॉक्टर की लापरवाही की भेंट चढ़ गया.
Jabalpur Child Death मौत आ गई, डॉक्टर साहब नहीं आए, MP का हेल्थ सिस्टम बीमार आज भी 77 हजार डॉक्टरों की दरकार - एमपी में डॉक्टरों की कमी
हॉस्पिटल में 5 साल के मासूम की मौत यह खबर नहीं बल्कि प्रदेश सरकार और उसके लाचार हेल्थ सिस्टम पर उठता सवाल है. हकीकत ये है कि मध्यप्रदेश को करीब 77 हजार डॉक्टरों की दरकार है, लेकिन इनमें से ड्यूटी पर केवल 22 हज़ार डॉक्टर ही हैं. जिनमें बरगी में हुए मामले की तरह 34 सौ की आबादी की सेहत का ख्याल रखने केवल एक डॉक्टर है. Jabalpur child death,Shortage of 77 thousand doctors
पत्नी के उपवास की खातिर नहीं सुनी मासूम की पुकार:मासूम की मां की तपस्या असफल रही. बाकी पत्निव्रता डॉक्टर साहब के प्रेम की सफलता देखिए कि पत्नी के उपवास की खातिर डॉक्टर साहब ने मरीज़ों की पुकार को भी दरकिनार कर दिया. डॉक्टर के लिए जैसे इमरजेंसी केस जैसे रोज़ाना होने वाली बात थी. वो मान बैठे कि रोज ही आती हैं जिंदा लाशें एक अकेला डॉक्टर कहां तक ईलाज करे. अच्छा स्कूल. खिलौने. पोषण आहार. खेल का मैदान. ये तो बहुत बाद की बातें हैं. ये तो तब होता कि जब उस बच्चे को उसका जीने का हक मिल जाता.
एमपी में है डॉक्टरों की कमी: यहएक लाईन की खबर नहीं है कि ईलाज ना मिल पाने पर मासूम की मौत हो गई. हकीकत यह है कि मध्यप्रदेश को करीब 77 हजार डॉक्टरों की दरकार है, लेकिन इनमें से ड्यूटी पर केवल 22 हज़ार डॉक्टर ही हैं. जिनमें से भी बरगी में हुए मामले की तरह के डॉक्टर भी हैं. 34 सौ की आबादी की सेहत का ख्याल रखने केवल एक डॉक्टर. बेटे की लाश लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के बाहर बैठी मां की तस्वीर किसी नए मुद्दे के आ जाने के बाद आपके ट्विटर से भी उतर भी जाए. कानों में पड़ी मां की चीखें जांच और मुआवज़े के शोर में दब जाएं, लेकिन ये मत भूलिएगा कि 5 साल का ऋषि खिलने की उम्र में लापरवाही से कुचला गया है फूल है.