भोपाल। मध्यप्रदेश की कांग्रेस इकाई में शीत युद्ध (Groupism in MP Congress) थमने का नाम नहीं ले रहा है. तमाम राजनेता एक-दूसरे को छकाने की कोशिश में लगे हैं, इसी के चलते चार जिला अध्यक्षों को गुरूवार की रात पद से हटा दिया गया है. पार्टी के इस फैसले को भी आपसी खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है. राज्य की कांग्रेस इकाई की कमान कमलनाथ के हाथ में आने के बाद आपसी गुटबाजी पर विराम लग चुका था, लेकिन विधानसभा के वर्ष 2018 में हुए चुनाव और पार्टी के सत्ता से बाहर होने के बाद एक बार फिर अंदर खाने खींचतान तेज हो गई है. तमाम नेता एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने से तो बच रहे हैं, मगर छकाने में नहीं हिचक रहे.
पार्टी के अंदर टकराव की स्थिति
पिछले दिनों राज्य में हुए उप-चुनाव के दौरान पार्टी के भीतर ही समन्वय गड़बड़ा चला था. यही कारण रहा कि उस समय कांग्रेस के विंध्य क्षेत्र के एक वरिष्ठ नेता का विवादित बयान सामने आया तो वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने खंडवा संसदीय क्षेत्र से पारिवारिक कारणों के चलते उपचुनाव लड़ने में असमर्थता जता दी थी. इसे उस समय पार्टी के अंदर चल रहे टकराव को बड़ी वजह माना गया था. अब पार्टी ने एक साथ चार स्थानों खंडवा शहर और ग्रामीण इसके अलावा बुरहानपुर शहर और ग्रामीण के अध्यक्षों को हटा दिया है. इन सभी को पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव के करीबी माना जाता है.
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सूत्रों का कहना है कि अरुण यादव और उनके भाई पूर्व मंत्री सचिन यादव खलघाट में आगामी समय में किसानों की समस्याओं को लेकर एक बड़े प्रदर्शन की तैयारी में हैं. इसके लिए उन्होंने 'चलो खलघाट अभियान' भी चला रखा है. यादव बंधुओं की इस मुहिम से पार्टी के भीतर ही कुछ लोग असहमत हैं, वो नहीं चाहते कि अरुण यादव की सक्रियता उस इलाके में रहें. लिहाजा यादव बंधुओं को कमजोर करने के पक्षधर लोगों ने मिलकर सियासी चाल चली और चारों अध्यक्ष पद से हटाने का पार्टी मुख्यालय से आदेश जारी करा दिया.
गुटबाजी से पार्टी को नुकसान