भोपाल। स्वतंत्रता दिवस परेड में दो साल बाद डॉग स्क्वायड शामिल होगा. जिसमें विदेशी नस्ल के कुत्तों के साथ ही देसी डॉग भी शामिल होंगे. दो साल पहले प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर एमपी पुलिस ने अपनी डॉग स्क्वायड में शामिल किया गया था. अब इनकी ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है (Desi dogs joined MP Police). एमपी पुलिस ने यह पूरी कवायद आत्मनिर्भर भारत की दिशा में की है. लेकिन इन कुत्तों के ट्रेनर का कहना है कि देसी डॉग विदेशी ब्रीड के मुकाबले स्लो लर्नर होते हैं. (MP Dog Squad Team)
एमपी पुलिस डॉग स्क्वायड टीम देसी कुत्ते नहीं जीत सके ट्रेनर का दिल:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2020 के अगस्त महीने में अपनी मन की बात कार्यक्रम में पुलिस के डॉग स्क्वॉयड में देसी नस्लों के श्वानों को शामिल करने का सुझाव दिया था, जिसपर मध्यप्रदेश पुलिस ने अमल किया था. एमपी पुलिस में देसी नस्ल के डॉग शामिल किए. इन डॉग को पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में ट्रेंड किया गया. प्रदेश पुलिस द्वारा ट्रेनिंग के लिए लाए गए देसी डॉग्स की ट्रेनिंग पूरी हो गई है, लेकिन ट्रेनिंग के बाद भी यह डॉग्स अपने ट्रेनर्स का मन नहीं जीत पाए हैं.(MP Police dog squad team)
देसी डॉग्स की हुई परीक्षा:ट्रेनर ने बताया कि विदेशी नस्ल के डॉग्स के मुकाबले अधिकांश देसी डॉग्स स्लो लर्नर साबित हुए हैं. डॉग्स ट्रेनर्स के मुताबिक देसी डॉग्स को कमांड बार-बार याद दिलानी पड़ रही है. कई बार दूसरे जानवरों को देखकर यह देसी डॉग्स ट्रेनर के आर्डर को भूल जाते हैं और उन पर ही हमलावर हो जाते हैं. हालांकि अब ट्रेंड किए गए डॉग्स का एग्जाम हो गया है, जिसका रिजल्ट 25 अगस्त तक आएगा. हालांकि देसी नक्स में भी कुछ ब्रीड जैसे मुधोल हाउंड, राजापलायम, कोम्बाई दूसरे देसी नस्ल के डॉग्स के मुकाबले अच्छा परफॉर्मेंस कर रहे हैं.(foreign dogs faster than desi dogs)
पिछले साल से शुरू हुई थी ट्रेनिंग:एमपी देश का पहला राज्य है जो अपनी BD&DS (बम डिस्पोजल और डॉग स्क्वाड) की टीम में देशी नस्ल के डॉग को शामिल करने जा रहा है. इसके साथ ही ये पहला मौका है जब प्रदेश में पहली बार देसी नस्ल के कुत्तों को इसके लिए ट्रेंड किया गया है. पीएम मोदी द्वारा भारतीय नस्ल के कुत्तों की खूबियां गिनाए जाने से प्रभावित होकर मध्यप्रदेश पुलिस की 23वीं बटालियन ने 20 देसी डॉग्स खरीदे थे. इनमें मुधोल हाउंड नस्ल के 4, रामपुर हाउंड के 4, राजापलायम नस्ल के 4, कन्नी नस्ल के 3, कोम्बाई नस्ल के 2 और चिप्पीपराई नस्ल के 2 डॉग्स खरीदे गए. पिछले साल अगस्त माह से इन देसी डॉग्स की ट्रेनिंग शुरू कराई गई थी. जो अब खत्म हो चुकी है. इसके बाद इन्हें 15 अगस्त को होने वाली स्वतंत्रता दिवस की परेड में शामिल किया जाएगा. हालांकि इनकी ट्रेनिंग का रिजल्ट 25 अगस्त को आएगा. (MP Dog squad included in Independence Day)
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देसी डॉग्स की ट्रेंनिंग मुश्किल:ट्रेनर की मानें तो विदेशी नस्ल के मुताबिक देसी डॉग्स को ट्रेंड करना थोड़ा मुश्किल है. आमतौर पर डॉग्स की ट्रेनिंग करीब 9 माह में पूरी हो जाती है, लेकिन इन देसी डॉग्स की ट्रेनिंग पिछले साल सितंबर माह से शुरू हुई थी और इस तरह 11 माह की ट्रेनिंग अभी दी जा चुकी है. इसके बाद भी ये अब तक ये पूरी तरह ट्रेंड नहीं हो पाए हैं. अब 20 देसी डॉग्स का एग्जाम हुआ है.
दी जाती है गंध से पहचानने की ट्रेनिंग: 23 वीं बटालियन में उपनिरीक्षक उग्रभान सिंह कहते हैं कि देसी और विदेशी नस्ल के कुत्तों में बहुत अंतर है. इन्हें ट्रेंड करने की कोशिश की गई है,कुछ अच्छे ट्रेंड हुए हैं. वे कहते हैं देसी कुत्ते दूसरे जानवरों को देखकर भागते हैं, जल्दी एक्साइटेड हो जाते हैं. इस ट्रेनिंग में डॉग्स को किसी व्यक्ति का पता लगाने के लिए घटनास्थल या वहां मौजूद दूसरी चीजों की गंध सुंघाकर उसे वहां तक पहुंचने की ट्रेनिंग दी जाती है. इसके अलावा विस्फोटक सामग्री की गंध से उसे छिपाए गए स्थान केंद्र के बारे में बताते हुए संबंधित व्यक्ति को गंध से पहचानने की ट्रेनिंग दी गई है.लेकिन देसी नस्ल के कई डॉग्स इसमें खरे नहीं उतरे. वे बार बार कमांड भूल रहे थे.
कैसे होती है देसी डॉग्स की ट्रेनिंग: भोपाल स्थित ट्रेनिंग अकादमी में देसी कुत्तों को प्रशिक्षण दिया गया. इसमें विदेशी डॉग के साथ 20 देसी डॉग को शामिल किया था. किसी भी खोजी कुत्ते की शुरुआत इशारा समझने की ट्रेनिंग से होती है, लेकिन इस ट्रेनिंग से भी ज्यादा अहम होती है, उस कुत्ते का अपने हैंडलर के साथ जज्बाती रिश्ता जुड़ना. हर कुत्ते का हैंडलर उसके जन्म के बाद ही तय हो जाता है. हैंडलर को अपने कुत्ते के साथ 3 से 4 महीने तक रोजाना कई किलोमीटर की दौड़ और कम से कम 5 से 6 घंटे तक खेलना, कूदना और उसे गोद में लेकर दुलारना होता है. इसकी वजह से कुत्ता उसके पसीने की गंध से अच्छी तरह वाकिफ हो जाता है और दोनों के बीच एक 'भरोसा' कायम हो जाता है.
इन कामों के लिए तैयार होते हैं कुत्ते: फौज हो या पुलिस, दोनों के पास डॉग स्क्वॉयड होते हैं. इनमें से कुछ का इस्तेमाल किसी चीज या व्यक्ति की तलाश करने के लिए होता है, जबकि कुछ का इस्तेमाल हथियार और बम जैसी चीजों की तलाश के लिए किया जाता है. इस जरूरत के आधार पर दो तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. कुत्तों के सूंघने की पॉवर बेहद जबरदस्त होती है. इस कुत्ते को खासतौर पर बारूदी सुरंगों, केमिकल बमों और हथियारों को पहचानने के लिए तैयार किया जाता है. बता दें कि किसी भी खोजी कुत्ते की सूंघने की क्षमता आम आदमी से 42 गुना ज्यादा होती है. इन्हें स्नीफर डॉग कहा जाता है. दूसरे वे कुत्ते होते हैं, जो किसी चीज को खोजकर निकालने या किसी का पीछा करने में माहिर होते हैं. इनका इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस करती है. चोरी, मर्डर जैसी घटनाओं का खुलासा करने में इनका इस्तेमाल होता है.
- पहले 3 से 4 महीने तक आज्ञा मानने और इशारा समझने की इन कुत्तों को ट्रेनिंग दी जाती है.
- यह ट्रेनिंग स्निफर और ट्रैकर, सभी तरह के खोजी कुत्तों को दी जाती है.
- दो महीने तक स्निफर डॉग को गोश्त की गंध के सहारे खुशबू का पीछा करना सिखाते हैं.
- इस ट्रेनिंग के बाद शुरू होती है रसायनों को सूंघने की प्रैक्टिस.
- गन पाउडर जलाकर उससे हथियारों को सूंघना सिखाया जाता है.
- हर कुत्ते की ट्रेनिंग 6 महीने तक होती है, फिर 2-2 महीने परीक्षा ली जाती है.
- ड्यूटी पर भी उन्हें लगातार RDX, TNT या IED के नमूने सुंघाकर जांबाज स्निफर डॉग बनाया जाता है.