भोपाल।शहर में चैत्र नवरात्र की तैयारियां तेज हो गई हैं. इस साल चैत्र नवरात्र दो अप्रैल से प्रारंभ हो रहे हैं, जो पूरे नौ दिन के होंगे. समापन 11 अप्रैल को होगा. बीते दो साल में कोरोना संक्रमण के प्रकोप के चलते देवी मंदिरों में श्रद्धालु दर्शन के लिए नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन इस बार पाबंदियां खत्म हो गई हैं. इसकी वजह से प्राचीन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी. राजधानी भोपाल में एक ऐसा मंदिर है जो मां दुर्गा के भक्तों की आस्था का केंद्र तो है ही, साथ ही राजधानी भोपाल की राजनीति का अड्डा भी माना जाता है. इस मंदिर के निर्माण के दौरान हालात ऐसे बन गए थे कि यहां पर कई दिनों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था. आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी.
कैसे बनी कर्फ्यू वाली माता:इस मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है. माना जाता है कि पहले यहां चबूतरे पर अस्थाई रूप से माता की प्रतिमा स्थापित की जाती थी. उसके बाद 1982 में विधि-विधान के साथ मूर्ति की स्थापना कर दी गई. इसी वजह से यहां मूर्ति को लेकर विवाद हो गया था. कर्फ्यू वाली माता मंदिर के पुजारी रमेशचंद्र दुबे ने बताया कि मंदिर बने हुए 45 साल हो गए हैं. मंदिर बनने के समय विवाद की स्थिति बनी थी, कई बाधाएं आई थी. इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ गया था. उसके बाद मंदिर की स्थापना हुई. तभी से इस मंदिर का नाम कर्फ्यू वाली माता पड़ गया.
ऐसी है मंदिर की ये है खासियत :कर्फ्यू माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. नवरात्र में यहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. नवरात्र के अलावा महाशिवरात्रि भी यहां धूमधाम से मनाई जाती है. मातारानी के इस दरबार में भक्तगण नारियल में लपेटकर अर्जी रखकर जाते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से मातारानी भक्तों की मनचाही मुराद जरूर पूरी करती हैं. रमेशचंद्र दुबे का कहना है कि मां जगदंबा के दरबार में जो भी आता है वह खाली नहीं जाता है. यह एक सिद्धपीठ है जो भी लोग यहां आते हैं उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. मनोकामनाएं पूरी होने पर यहां पर लोग भंडारा आयोजित करते हैं ,साथ ही मुंडन भी किया जाता है.