भोपाल। लोकसभा चुनाव के दौरान देश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. खास कर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी के बाद चुनावी मुद्दे में हिंदुत्व-सांप्रदायिकता का तड़का लग गया है. सेना-राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांगने वाली बीजेपी-संघ अब शहीद हेमंत करकरे पर सवाल उठा रही है. ऐसे में सीपीएम ने साध्वी की आमद को संघ-बीजेपी की तय रणनीति का हिस्सा बताते हुए कहा कि जो कुछ घट रहा है, वह प्रज्ञा की गलती या मासूमियत नहीं, ये संघ और भाजपा का तय एंजेडा है.
सीपीआई (एम) के सचिव बादल सरोज का कहना है कि ये बिल्कुल अनायास नहीं है. दो राउंड की वोटिंग के बाद बीजेपी के हारने के रुझान मिल रहे थे, बीजेपी के खिलाफ लोगों में आक्रोश है, इसलिए सोची-समझी रणनीति के तहत बीजेपी-आरएसएस ने चुनावी एजेंडे को परिवर्तित करने के लिए और खुल्लम-खुल्ला हिंदुत्व और सांप्रदायिकता के उग्र आह्वान के साथ प्रज्ञा सिंह को खड़ा किया है.
प्रज्ञा ठाकुर का खड़ा होना कई मामलों में चिंताजनक संदेश देता है. चुनाव में कौन हारेगा-कौन जीतेगा, ये महत्वपूर्ण नहीं होता है. चुनाव में लोकतंत्र जीतेगा और संविधान जीतेगा, ये ज्यादा महत्वपूर्ण है. प्रज्ञा उस कबीले का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसका देश के संविधान में कोई विश्वास ही नहीं है. वो इतनी ज्यादा उग्र विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हैं कि संघ को भी पल्ला झाड़ना पड़ा था. मालेगांव ब्लास्ट में जब अभिनव भारत का नाम आया तो संघ प्रमुख को ये बयान देना पड़ा था कि हम अभिनव भारत की लाइन से सहमत नहीं हैं और उस संगठन के साथ हमारी कोई हमदर्दी नहीं है.
इसके बावजूद बीजेपी 24 घंटे पहले प्रज्ञा ठाकुर को सदस्य बनाती है और फिर उम्मीदवार बनाती है. इसका मतलब ये है कि बीजेपी अब अपने पांच साल के परफार्मेंस पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती, अब उसने राष्ट्रवाद के मुद्दे को भी पीछे छोड़ दिया, अब उसको लगने लगा कि पुलवामा और बालाकोट भी काम नहीं आने वाला तो सीधे तौर पर वो मारकाट पर उतर आयी है. जो संदेश उन्होंने दिया है कि संप्रदायिकता कभी भी किसी एक धर्म और एक विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं है. संप्रदायिकता उस मानवीय मूल्यों के खिलाफ है, जो 5 हजार साल में इस देश और दुनिया की जनता ने झेला है.
प्रज्ञा ने पहला हमला हेमंत करकरे के खिलाफ किया, जो इस दौर के आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाले सबसे बड़े योद्धाओं में से एक थे. उनके खिलाफ विष वमन किया, जिससे ये एजेंडा स्पष्ट हो गया कि वो अब हत्याओं और मारकाट की राजनीति को गौरव और वर्चस्व के तौर पर पेश करेंगे. बीजेपी का ये एजेंडा अनायास नहीं है. भाजपा और आरएसएस सोची समझी रणनीति के तहत प्रज्ञा को लेकर आए हैं.
प्रज्ञा के हेमंत करकरे के बयान के बाद भी पीएम मोदी देश भर की सभाओं में भाषण दे रहे हैं कि प्रज्ञा के साथ टॉर्चर हुआ है, जबकि मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट इससे इनकार कर चुका है. इसके बाद भी हेमंत करकरे को टारगेट करते हुए खुद प्रधानमंत्री बयान दे रहे हैं. इसका मतलब ये है कि अब बीजेपी अब हिंदुत्व-आतंकवाद को सामने रखकर चुनाव लड़ रही है.
इस मामले में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा कहते हैं कि सीपीएम कहीं है क्या. जहां सीपीएम का जन्म हुआ था, वो पश्चिम बंगाल में है. अब बादल सरोज की वाणी में वैचारिक दम नहीं बचा है. हां! ठीक है कि कुछ बोलना है तो बोले क्योंकि वो किसी पार्टी के सचिव है.