भोपाल/रायपुर। छत्तीसगढ़ की राह पर मध्य प्रदेश चल पड़ा है. छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में भी गोबर और गौमूत्र को खेती का बड़ा आधार बनाने की कोशिशें तेज हो गई हैं. इन प्रयासों की सफलता से रासायनिक उर्वरक पर निर्भरता कम होगी, तो वहीं राज्य खाद और कीटनाशक के मामले में आत्म निर्भर बन जाएंगे. छत्तीसगढ़ में बीते तीन सालों में गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए नवाचार किए गए हैं. यहां गोबर से बर्मी कंपोस्ट के अलावा कई उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. दो रुपये किलो की दर से गोबर खरीदा जा रहा है, तो वहीं गोबर के उत्पाद बनाने के जरिए महिलाओं को रोजगार भी मिला है.
गोबर और गौमूत्र को खेती का बड़ा आधार बनाने पर जोर
भूपेश बघेल सरकार का अब रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने के लिए कृषि क्षेत्र में गौमूत्र का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने की रण्नीति बना रही है. कृषि कार्य में गौमूत्र का किस तरह उपयोग किया जा सकता है, इसकी क्या संभावनाएं है. इसके लिए किसानों और कामधेनु विश्वविद्यालय से चर्चा होगी. रासायनिक खादों और विषैले कीटनाशकों के निरंतर प्रयोग से मिट्टी की उर्वरक शक्ति निरंतर कम हो रही है. साथ ही जनसामान्य के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. इसी के चलते गोबर और गौमूत्र को खेती का बड़ा आधार बनाने पर जोर है.
एशिया के सबसे बड़े CNG प्लांट के लिए गोबर की खरीद
छत्तीसगढ़ की ही तरह मध्य प्रदेश भी इस दिशा में आगे बढ़ रहा है. इंदौर में जैविक अपशिष्ट से बायो सी.एन.जी बनाने का संयंत्र लगाया गया है. इस संयंत्र के लिए पांच रुपये किलो की दर से गोबर खरीदा जा रहा है. इससे पशुपालकों की आमदनी बढ़ेगी, वहीं राज्य सरकार का जोर खेती में गोबर और गौमूत्र का ज्यादा से ज्यादा उपयोग किए जाने पर जोर दिया जा रहा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी खेती में गोबर और गौमूत्र के ज्यादा से ज्यादा उपयेाग पर जोर दे रहे हैं. मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देना समय की आवश्यकता है, खेती में कीटनाशक और फर्टिलाइजर के बढ़ते उपयोग से मानव स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है.