भोपाल। कोरोना संक्रमण के कारण इस बार सार्वजनिक पंडालों में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना नहीं हो पायी है. श्रद्धालु अपने घरों में भगवान गणेश की छोटी मूर्तियों की स्थापना की है. सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक इस बार बाजारों में 2 फीट से बड़ी साइज की प्रतिमाएं नहीं मिल रही हैं.
मंदसौर में प्रशासन के आदेश के बाद साल भर से गणेश प्रतिमाएं बनाने वाले कारीगरों द्वारा बनाई गई तमाम बड़ी प्रतिमाएं बेकार हो गई है. तमाम कारीगर अब 2 फीट से छोटे आकार की मूर्तियां ही बाजारों में बेच रहे हैं. इस साल बड़ी प्रतिमाओं के निर्माण में हुई भारी लागत से उन्हें इस कारोबार में घाटा हो गया है. प्रशासन की गाइड लाइन के मुताबिक जिले में सार्वजनिक स्थानों में गणेश प्रतिमा की स्थापना नहीं की गई. श्रद्धालउ अपने घरों में छोटी प्रतिमा की स्थापना कर रहे हैं.
पांढुर्णा में स्थित प्राचीन गणेश मठ
छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में स्थित प्राचीन गणेश मठ का खास महत्व है. प्राचीन मठ पर 973 साल से गणपति बप्पा विराजमान हो रहे हैं. इस प्राचीन मठ के विघ्नहर्ता को पांढुर्णा के राजा का भी दर्जा दिया गया है, लेकिन कोरोना महामरी की वजह से इस साल शासन द्वारा जारी गाइड लाइन को ध्यान में रखकर प्रतिमा स्थापित की जायेगी.
श्रद्धालु इस साल पास में जाकर गणपति बप्पा के दर्शन नहीं कर पाएंगे. गणपति बाप्पा के दर्शन 100 गज की दूर से करने होंगे. इस साल यहां पर किसी भी तरह के कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाएंगे. प्राचीन मठ में विराजमान होने वाले गणपति बप्पा की खासियत है कि उनका रंग, रूप और मूर्ति की ऊंचाई कभी नहीं बदला. सदियों से ये एक समान रहा है. गणपति उत्सव में हर साल इस प्राचीन मठ में आस्था का मेला लगता है.
प्राचीन मठ में 16 मठाधिपतियो की समाधि मौजूद है. उनकी प्रतिमाएं आज भी इस मठ में दिखाई देती हैं. वर्तमान में इस मठ का संचालन 17 वें मठाधिपति के रूप में वीररुद्र मुनि शिवाचार्य महाराज कर रहे हैं. लेकिन इस मठ की दुर्दशा बनी हुई है. प्राचीन मठ पूरी तरह जर्जर होकर सदियों पुरानी इमारत और उसकी लकड़ी सड़ने लगी है. लोगों मान्यता है कि बप्पा की पूजा अर्चना से मनोकामना पूरी होती है. गणेश उत्सव के अंतिम दिन गणपति बाप्पा की प्रतिमा को मठ में बनाये जा रहे जल कुंड में विसर्जित किया जाएगा. प्राचीन मठ में पहली बार 100 गज की दूरी से श्रद्धालु दर्शन करेंगे.
सात सौ साल पुराना सिद्धि विनायक मंदिर