भोपाल/झांसी। बुंदेलखंड का सूखा मिटाने के लिए कई साल से तमाम अभियानों के बावजूद इस इलाके की तस्वीर नहीं बदली है. हां, इतना जरूर है कि सरकारी बजट का वक्त करीब आते ही और विभिन्न संस्थाओं से मिलने वाले बजट की आस में जल संरक्षण के नारे सुनाई देने लगते हैं. एक बार फिर ऐसा ही कुछ शुरू हो रहा है. बुंदेलखंड वैसे तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 7-7 जिलों, यानी कि कुल मिलाकर 14 जिलों से बनता है. यह इलाका कभी पानीदार हुआ करता था ऐसा इसलिए क्योंकि यहां तालाब, कुएं, बावड़ी और चोपरा हुआ करते थे. आज भी इन जल संरचनाओं के निशान इस क्षेत्र की समृद्धि और संपन्नता की कहानी सुनाते हैं.
योजनाओं के नाम पर करोड़ों का बंदरबांट
वक्त गुजरने के साथ यहां की जल संरचनाएं एक-एक कर जमीन में दफन होती गईं. सरकारों से लेकर तमाम संस्थानों ने इस इलाके की तस्वीर बदलने के लिए करोड़ों रुपए की राशि मंजूर की, तरह-तरह के अभियान भी चले, मगर यह इलाका अपनी विरासत को सहेजने में नाकाम रहा, बल्कि पानी का संकट लगातार गहराता गया. तालाबों को जिंदा करने के नाम पर तो कभी नदियों को प्रवाहित करने के अभियान की खातिर बेहिसाब धन राशि खर्च की गई. इस धनराशि को लूटने के मामले में जहां सरकारी महकमा पीछे नहीं रहा तो वहीं पानी संरक्षण के पैरोकार ने भी हिचक नहीं दिखाई. एक बार फिर नए साल की शुरूआत के साथ जल संरक्षण के नारे सुनाई देने लगे हैं, क्योंकि एक तरफ जहां मार्च से पहले विभिन्न माध्यमों के जरिए हासिल किए गए फंड को खर्च करने की होड़ मची है तो वहीं दूसरी ओर आगामी साल के बजट में हिस्सा हासिल करने के मंसूबे संजोए जा रहे हैं.
स्थिति जस की तस, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा विशेष पैकेज