भोपाल।कमलनाथ सरकार के समय लाई गई रेत नीति को प्रदेश सरकार बदलने जा रही है. पिछली सरकार द्वारा रेत नीति तीन साल के लिए लागू की गई थी. नई नीति के लिए खनिज विभाग के अधिकारियों का दल पिछले दिनों उत्तर प्रदेश, केरल और तेलंगाना की नीति का अध्ययन कर चुका है. जल्द ही नई नीति तैयार कर कैबिनेट में एप्रूवल के लिए लाई जाएगी. उधर रेत नीति में बदलाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधा है. कांग्रेस के आरोप है कि अवैध खनन के नए रास्ते खोलने के लिए सरकार नई नीति लेकर आ रही है.
क्यों पड़ रही रेत नीति में बदलाव की जरूरत
पिछली कमलनाथ सरकार 2019 में नई रेत उत्खनन नीति लेकर आई थी, और दावा किया था कि नई नीति से प्रदेश को रेत से होने वाली आए 220 करोड़ से बढ़कर 1200 करोड़ हो जाएगी. इस नीति के तहत नदियों से रेत निकालने ई-टेंडर के माध्यम से ठेके दिए गए थे. इसमें एक जिले का ठेका एक ठेकेदार को दिए जाने की नीति अपनाई गई, ताकि अवैध खनन पर रोक लगाई जा सके.
राज्य सरकार ने एक साल के लिए राॅयल्टी में छूट दी थी, लेकिन पर्यावरण और उत्खनन अनुमति में देरी से अधिकांश ठेकेदार इसका लाभ नहीं उठा सके. बाद में कोरोना की दस्तक के बाद लाॅकडाउन लग गया. जिस वजह से होशंगाबाद के ठेकेदार ने ठेके से हाथ खींच लिए. इसी तरह रायसेन, मंदसौर, अलीराजपुर, मंडला, सिंगरौली, सीहोर सहित कई जिलों के ठेकेदारों ने परफाॅर्मेंस गारंटी जमा न करने से यहां टेंडर निरस्त कर दिए गए.
उज्जैन और आगर-मालवा में तो विभाग को ठेकेदार ही नहीं मिल पा रहे हैं, जबकि यहां करीब 4 बार टेंडर जारी किए जा चुके हैं. सरकार इस स्थिति के लिए पुरानी रेत नीति में किए गए प्रावधानों को जिम्मेदार मान रही है. खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के मुताबिक, मौजूदा रेत नीति में कई विसंगतियां हैं, जिसमें बदलाव की जरूरत है.