भोपाल।मध्य प्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ के बाद प्रदेश के कई क्षेत्र अलग राज्य की मांग करते आए हैं. विंध्य प्रदेश की मांग भी काफी समय से उठाई जा रही है. इस बीच विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने भी अलग विंध्य प्रदेश बनाने का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि छोटे प्रदेश बनाने से अगर विकास होता है तो फिर दिक्कत क्या है, हमें बस इसकी मांग करने वालों के तरीके से दिक्कत है. ईटीवी भारत से बातचीत में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने तमाम बातें साझा कीं. क्या कुछ कहना था उनका इसपर, जानने के लिए रिपोर्ट पढ़ें.
लंबे समय से उठ रही विंध्य प्रदेश की मांग
मध्य प्रदेश का गठन 1 नवंबर 1956 को हुआ था. उसके पहले विंध्य प्रदेश अस्तित्व में था. नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व खत्म हो गया. इसमें आने वाले बघेलखंड और बुंदेलखंड के साथ अन्य क्षेत्र मध्य प्रदेश का हिस्सा हो गए. विंध्य प्रदेश की मांग उठाने वाले नेताओं का कहना है कि विलय के समय यहां जो संसाधन दिए जाने थे वह नहीं मिले. यही वजह है कि विंध्य प्रदेश की मांग अभी भी उठती रहती है. उस समय विलय का विरोध भी हुआ था. जिसमें आंदोलन हुआ, गोलियां चलीं और लोग शहीद भी हुए, कई लोगों को जेल में तक डाल दिया गया था.
विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का समर्थन
विंध्य से आने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी विंध्य प्रदेश की मांग उठाते रहे हैं. अब इसी मुद्दे को बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी भी उठा रहे हैं. उन्होंने सरकार को चेताया भी है कि विंध्य को प्रदेश नहीं बनाया गया तो बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा. अलग राज्य के समर्थन में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम भी उतर आए हैं, इनके मैदान में उतरने के बाद नारायण त्रिपाठी को बल जरूर मिलेगा.
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कैसा था विंध्य प्रदेश ?
राज्य पुनर्गठन 1956 के पूर्व विंध्य प्रदेश 1951 में गवर्नमेंट ऑफ स्टेट्स एक्ट के अंतर्गत पार्ट सी स्टेट था. इसका क्षेत्रफल 14,84,5721 एकड़ था यानि लगभग 60 हजार वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 35 लाख 75 हजार थी. विध्य में रीवा, सीधी, सिंगरौली, सतना, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, दतिया आदि जिले आते थे. इसमें 1300 ग्राम पंचायतें थीं, 11 नगरपालिका, विधानसभा की 60 सीट और लोकसभा की 6 सीटें थी. उस समय मध्य प्रदेश की राजधानी रीवा हुआ करती थी.