भोपाल।जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रदेश और क्षेत्रीय इकाइयों के अध्यक्षों और महासचिवों की दो दिवसीय बैठक भोपाल के फॉर्च्यून रिज़ॉर्ट एंड गार्डन में आयोजित की गई. बैठक की अध्यक्षता जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने की. इस बैठक में जमीयत उलमा-ए-हिंद की राष्ट्रव्यापी इकाइयों के प्रदर्शन की विस्तार से समीक्षा की गई. बैठक में जमीयत उलमा-ए-हिंद के दस सूत्री रचनात्मक कार्यक्रमों को लागू करने, मिल्लत फंड के क्रियान्वयन, सीरत-उल-नबी प्रश्नोत्तरी, सामाजिक सुधार और धार्मिक शिक्षा आंदोलन आदि को जिला और स्थानीय स्तर पर लागू करने के तरीकों पर भी चर्चा हुई.
जमीयत को मुस्लिम समुदाय के संरक्षक के रूप में देखा जाता है: इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने जमीयत के अधिकारियों को धर्म, देश, राष्ट्र और मानवता आदि की सेवा में खुद को समर्पित करने के लिए आमंत्रित किया. वह मुखर थे कि जमीयत को भारत के मुस्लिम समुदाय के संरक्षक के रूप में देखा जाता है. उन्होंने कहा हजरत शाह वलीउल्लाह साहब के आंदोलन की पराजय के बाद, जमीयत उलमा ने भारत में मुस्लिम समुदाय की देखभाल करने के लिए सभी जिम्मेदारियों को संभाला है. जब भी समुदाय पर कोई आपदा आती है, तो मुसलमान जमीयत की ओर इस उम्मीद से देखते हैं कि वह उनके साथ खड़ा होगा. इस वजह से जब हम उम्मीद के मुताबिक काम नहीं कर पाते हैं तो वे हमारी आलोचना करते हैं.
देश की वर्तमान स्थिति पर चिंता की व्यक्त:मौलाना मदनी ने संगठन में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने पर जोर दिया और घोषणा की कि संगठनात्मक स्थिरता के उद्देश्य से राज्य स्तर पर आयोजकों की नियुक्ति की जाएगी. मौलाना मदनी ने कहा कि अगर हमें देश के लिए कुछ करना है तो हमें संगठन के स्थानीय प्रतिनिधियों को ग्राम स्तर तक खड़ा करना होगा. उस स्थिति में, हम वहां जाकर धर्मत्याग और अन्य सामाजिक बुराइयों से लड़ सकते हैं. उन्होंने दावा किया कि 42 प्रतिशत युवा शराब के आदी हैं. वे गांव और शहर में रहते हैं, हम उन्हें तभी सुधार सकते हैं जब जमीयत के प्रतिनिधि हर जगह मौजूद हों. उन्होंने जमीयत के पदाधिकारियों से जमीयत की इकाई को जिला, प्रखंड व स्थानीय स्तर पर स्थापित करने का संकल्प लिया. साथ ही देश की वर्तमान स्थिति पर बड़ी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे पास अपने मार्च के दौरान रुकने का समय नहीं है. हमें हर हाल में आगे बढ़ना है. उन्होंने पुराने जमाने के बुजुर्गों के बलिदान का जिक्र करते हुए कहा कि आज जो भी धार्मिक आंदोलन चल रहे हैं, वह जमीयत के बलिदान का फल है.