भोपाल। 2 दिसंबर 1984 की रात कभी भुलाई नहीं जा सकती. भोपाल गैस त्रासदी भारत के इतिहास में वह काला अध्याय है जिसे शायद ही कभी भुलाया जा सके. यूनियन कार्बाइड प्लांट में गैस रिसाव के कारण हजारों लोगों की मौत हो गई थी. बताया ((Bhopal Gas Tragedy Victims ))जाता है कि गैस का रिसाव तो कई दिन पहले से हो रहा था. फैक्ट्री के आसपास रहने वाली आबादी कई दिनों से बेचैनी महसूस कर रही थी, लेकिन उदासीन और लापरवाह कंपनी प्रबंधन ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया. गैस त्रासदी में कई परिवार तबाह हो गए .इसके बाद भी उनके परिवार के बचे हुए लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और नए (story of accident 2nd december 1984)सिरे से जिंदगी जीने के लिए खुद को खड़ा किया .यह लोग आज भी गैस पीड़ित संगठनों की मदद से खुद को जिंदा रखे हुए हैं.
3 दिसंबर को हो गई मां ,बाप, भाई की मौत
जेपी नगर की रहने वाली रेहाना बी बताती हैं कि 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात वह फैक्ट्री के सामने ही घर पर ही थी. रात 12:00 बजे घर के बाहर गदर मचा, बाहर निकले तो धुआं ही धुआं था. रेहाना ने बताया कि लोग इधर-उधर भागने लगे.(bhopal gas victims story) उनके मां-बाप और भाई 3 दिसंबर को ही अपनी जान गंवा बैठे. 3 दिसंबर को पहले भाई करीब 12:00 बजे ,फिर शाम 5:00 बजे मां और बाप दोनों खत्म हो गए.
चारों तरफ लाशें ही लाशें थी
रेहाना बी कहती हैं कि मैंने लाशों का ऐसा मंजर देखा है कि बता ही नहीं सकती .चारों तरफ लाशें ही लाशें थी. हम आज भी बीमारियों से जूझ रहे हैं. मेरे पति पैरालाइज्ड हो गए हैं.
5 बच्चों को लेकर भागे थे न्यू मार्केट की तरफ
जेपी नगर निवासी नवाब खान बताते हैं कि 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात वह अपने परिवार के साथ 5 बच्चों को लेकर जेपी नगर से न्यू मार्केट की तरफ भागे थे. गैस लीक की खबर के बाद इस इलाके में अफरा-तफरी मच गई थी. वे टेलरिंग का काम करते थे. गैस रिसाव के चलते उनकी पत्नी और लड़का दोनों ही काफी बीमार हो गए थे. 5 साल बाद 1989 को पत्नी का देहांत हो गया. 1991 में लंबी बीमारी के बाद लड़के ने भी साथ छोड़ दिया. नवाब खान ने बताया कि वह खुद डेढ़ साल तक अस्पताल में भर्ती रहे . अब गैस पीड़ित संगठन के साथ जुड़कर अपना संघर्ष जारी रखे हुए हैं.