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आंगनबाड़ी मानदेय घोटाला! करोड़ों डकार गए अधिकारी, PSC ने बर्खास्तगी की मंजूरी दी - एमपी में महिला एवं बाल विकास विभाग में करोड़ो का गबन

MP में महिला एवं बाल विकास विभाग में करोड़ो के गबन का मामला सामने आया है, जिसमें परियोजना अधिकारी राहुल संघीर और कीर्ति अग्रवाल की बर्खास्तगी को पीएससी ने मंजूरी दे दी है. अंतिम निर्णय महिला एवं बाल विकास विभाग को लेना है. राजधानी सहित 14 जिलों में हुए इस घोटाले में करोड़ो की फेराफेरी परियोजना अधिकारी और लिपिकों ने मिलकर की.

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एमपी आंगनबाड़ी मानदेय घोटाला

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Published : Jan 11, 2022, 7:12 PM IST

भोपाल।आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय घोटाला मामले में लिप्त भोपाल के निलंबित बाल विकास परियोजना अधिकारी राहुल संघीर और कीर्ति अग्रवाल की बर्खास्तगी को पीएससी ने मंजूरी दे दी है. अब महिला एवं बाल विकास विभाग को अंतिम निर्णय लेना है. 2014 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता-सहायिकाओं के मानदेय को बाल विकास परियोजनाओं से आहरित करने पर रोक लगा दी गई. मानदेय वितरण की जिम्मेदारी जिला परियोजना अधिकारी को सौंपी गई थी, फिर भी ये अधिकारी ग्लोबल बजट से राशि निकालते रहे और दस्तावेजों में कार्यकर्ता-सहायिकाओं को मानदेय का भुगतान बताते रहे.

हाई कोर्ट का स्थगन आड़े आया

जबलपुर हाईकोर्ट के स्थगन के चलते दोनों अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं हो पा रही है. विभाग के ACS अशोक शाह ने हाई कोर्ट में मामला देख रहे प्रभारी अधिकारी को कोर्ट में मामले की जल्द सुनवाई की अर्जी लगाने के निर्देश दिए हैं. वहीं विभाग ने इसी मामले में एक अन्य दोषी बाल विकास परियोजना अधिकारी को बर्खास्त करने का प्रस्ताव पीएससी को भेज दिया है. भोपाल सहित प्रदेश के 14 जिलों में 2014 से 2017 तक बाल विकास परियोजना अधिकारी और लिपिकों ने मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया. सबसे पहले भोपाल की आठ बाल विकास परियोजनाओं में गड़बड़ी सामने आई. जांच में छह करोड़ के घोटाले की पुष्टि के बाद एक के बाद एक अन्य जिलों में जांच कराई गई और घोटाला 26 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

इस तरह किया गया घोटाला

2014 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता-सहायिकाओं का मानदेय, बाल विकास परियोजनाओं से आहरित करने पर रोक लगा दी गई. मानदेय वितरण की जिम्मेदारी जिला परियोजना अधिकारी को सौंपी गई थी. फिर भी ये अधिकारी ग्लोबल बजट से राशि निकालते रहे और दस्तावेजों में कार्यकर्ता-सहायिकाओं को मानदेय का भुगतान बताते रहे, जबकि मानदेय का भुगतान जिला कार्यालय अलग से कर रहा था. आरोपी यह राशि चपरासी, कार्यालय में पदस्थ कंप्यूटर आपरेटर, दोस्तों और रिश्तेदारों के बैंक खातों में जमा कराते थे और बाद में बांट लेते थे.

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