चाईबासा: कोल्हान के हो आदिवासी बहुल गांवों में उनका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण माघे पर्व की तैयारियां शुरू हो (Preparations Of Maghe Festival Started In Kolhan) गई हैं. घरों की मरम्मत और पूजा स्थलों की सफाई का काम चालू हो गया है. महिलाएं भी मिट्टी के घरों की निपाई करने और दीवारों की रंगाई-पुताई में जुट गईं हैं. घरों के छप्पर भी व्यवस्थित किए जा रहे हैं. पूजा स्थल की साफ-सफाई और समतलीकरण का कार्य भी चल रहा है. वहीं गांवों में सामूहिक नृत्य के लिए बनाए गए नृत्य अखाड़ों को भी दुरुस्त किया जा रहा है.
कोल्हान के हो आदिवासी बहुल गांवों में माघे पर्व की तैयारियां शुरू, मकर संक्रांति से शुरू होगा पर्व - झारखंड न्यूज
कोल्हान क्षेत्र में ज्यादातर हो समुदाय के आदिवासी निवास करते हैं. इनका सबसे प्रमुख पर्व माघे है. जो मकर संक्रांति से शुरू होगा. इसको लेकर हो आदिवासी बहुल गांवों में जोर-शोर से तैयारियां (Preparations Of Maghe Festival Started In Kolhan) चल रही हैं. आदिवासियों में पर्व को लेकर खासा उत्साह नजर आ रहा है.
![कोल्हान के हो आदिवासी बहुल गांवों में माघे पर्व की तैयारियां शुरू, मकर संक्रांति से शुरू होगा पर्व Preparations Of Maghe Festival Started In Kolhan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/768-512-17386521-983-17386521-1672748616071.jpg)
माघे पर्व पर कई गांवों में आयोजित की जाएगी खेलकूद प्रतियोगिताः वहीं हो आदिवासी (Ho Tribal Community) बहुल कई गांवों में माघे पर्व के तीसरे दिन हारमागेया पर्व के उपलक्ष्य में खेलकूद प्रतियोगिता आयोजित करने की भी तैयारी जोर-शोर से चल रही है. इसको लेकर युवाओं में खासा उत्साह नजर आ रहा है. वहीं कुछ गांवों में तो मनोरंजन के लिए मुर्गापाड़ा भी आयोजित किया जाता है. जिसमें मुर्गोंं को आपस में लड़ाया जाता है. जिसका मुर्गा स्पर्धा में जीतता है उसे इनाम दिया जाता है. इसकी भी तैयारी चालू हो गई है. पर्व में खान-पान और पूजा में काम आनेवाले पत्तों की व्यवस्था में महिलाएं जुट गईं हैं. जंगलों में जाकर पत्ते तोड़कर ला रही हैं.
मकर संक्रांति से लेकर अप्रैल माह तक मनाया जाता है पर्वः ज्ञात हो कि हो आदिवासी बहुल गांवों में मकर संक्रांति से लेकर अप्रैल माह तक अपनी सुविधानुसार तिथि तय कर माघे पर्व (Maghe Festival) मनाने की परंपरा है. गांव स्तर पर होनेवाले इस पर्व की तिथि की घोषणा ग्रामीणों की सहमति से ग्राम दिऊरी (धार्मिक पुरोहित) द्वारा की जाती है. परंपरागत रूप से यह पर्व सात दिनों का होता है. जिसमें हर दिन अलग-अलग धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. अदिवासी हो समुदाय का यह सबसे बड़ा उत्सव भी है. कृषि कार्य की समाप्ति के बाद प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए यह पर्व उत्सव के रूप में मनाया जाता है.