चाईबासा: पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर पुरानी बस्ती में आदि दुर्गा पूजा कमिटी 109 वर्षों से आदिकाल की परंपराओं के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन करती आ रही है. पूजा कमिटी की तरफ से यहां वर्ष 1912 से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जा रही है. इसकी सबसे प्रमुख पहचान विजयदशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन के वक्त मशाल जुलूस निकाला जाना है. आदि काल की तरह हाथों में मशाल लिए सैकड़ों लोग मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा को कंधे पर उठाकर जय दुर्गे के नारों के साथ विसर्जन जुलूस निकालते हैं. माना जाता है कि इस जुलूस की शुरुआत 1857 में महाराजा अर्जुन सिंह ने की थी.
पहले राजमहल में होती थी पूजा
इससे पहले चक्रधरपुर-पोड़ाहाट के महाराजा अर्जुन सिंह और उनके पूर्वज यह पूजा अपने राजमहल में करते थे. 1912 में इस पूजा को आयोजित करने का दायित्व आम जनता को सौंपा गया. तब से पुरानीबस्ती में आदि दुर्गा पूजा कमिटी यहां पूजा करती आ रही है. महाराजा अर्जुन सिंह ने अंग्रेजों से बचने के लिए मशाल जुलूस विसर्जन की परंपरा की शुरुआत की थी.
हाथों में मशाल लिए मां दुर्गा की विदाई
चक्रधरपुर पुरानाबस्ती निवासी सदानंद होता ने बताया कि दुर्गा पूजा कमिटी का विजयदशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन सबसे अद्भुत होता है. आदि काल की तरह हाथों में मशाल लिए सैकड़ों लोग मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा को कंधे पर उठाकर जय दुर्गे के नारों के साथ विसर्जन जुलूस निकालते हैं. किंवदन्ती है कि यह परंपरा 1857 ई. में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान महाराजा अर्जुन सिंह ने शुरू की थी. महाराजा अर्जुन सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका था और महल छोड़कर जंगल में रहते थे.