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संघर्षों से भरी है झारखंड की 'लेडी टार्जन' जमुना टुडू की कहानी, पूरी दुनिया करती है सलाम

पर्यावरण संरक्षण के मुहिम की शुरुआत करने वाली झारखंड की लेडी टार्जन जमुना टुडू की कहानी अनोखी है. वह रक्षाबंधन के मौके पर पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया गांव की महिलाओं के साथ पेड़ को राखी बांधती हैं, वह यह काम सालों से करती आ रही हैं. उन्हें इस कार्य के लिए पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है.

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Published : Aug 15, 2019, 12:31 PM IST

पेड़ को राखी बांधती महिलाएं

जमशेदपुर: आज देश आजादी की सालगिरह के जश्न के साथ-साथ रक्षाबंधन का त्योहार भी मना रहा है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और लंबी उम्र की कामना करती हैं. पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया गांव में रक्षाबंधन का यह त्योहार अनोखे तरीके से मनाया जाता है. इस गांव की महिलाएं पेड़ को राखी बांधकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाती हैं.

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रक्षाबंधन के इस अनोखे अभियान की शुरुआत चाकुलिया गांव निवासी पद्मश्री जमुना टुडू ने की है. दरअसल, चाकुलिया गांव की महिलाएं रक्षाबंधन पर पिछले कई सालों से पेड़ को राखी बांधती आ रही हैं. इस दौरान महिलाएं यह वचन लेती हैं कि हम पेड़ों की सुरक्षा करेंगे.

2004 से चली आ रही है रक्षाबंधन की यह परंपरा

पद्मश्री जमुना टुडू ने इस अनोखी पहल की शुरुआत 15 साल पहले की थी. इस परंपरा में चाकुलिया गांव की महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. इस कार्य के लिए उनकी प्रशंसा जिले और राज्य में होती है. झारखंड राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के मुतुर्खुम गांव में आदिवासी महिलाओं का समूह वहां के जंगलों की रक्षा के लिए प्रतिदिन सुबह गश्त पर निकल जाता है. गांव के आसपास का जंगल बहुमूल्य 'साल' के पेड़ों से भरा पड़ा है. जिसकी तस्करी वन माफियाओं द्वारा की जाती रही है. गश्ती के दौरान महिलाएं मजबूत लाठी-डंडों, तीर-धनुष, भाले लेकर निकलती हैं. इस समूह का नेतृत्व 37 वर्षीय पद्मश्री जमुना टुडू करती हैं.


पद्मश्री जमुना टुडू का संघर्ष

जमुना टुडू ने 2004 में कड़े संघर्षों के बाद 'वन सुरक्षा समिति' का गठन किया. जिस समिति में आज 60 सक्रिय महिला सदस्य हैं. जो दिन में तीन बार जंगल में बारी-बारी से सुबह-दोपहर-शाम गश्ती पर जाती हैं. वह नजर रखती हैं कि कहीं कोई वन माफिया उनके जंगल में अवैध कटाई न करे. कई बार वन माफिया से आमने-सामने की टक्कर के बाद इन वीरांगनाओं को लहूलुहान भी होना पड़ा है.

हालांकि शुरुआत में जमुना को बहुत निराशा का सामना करना पड़ा, जब उन्हें गांव की महिलाओं का साथ नहीं मिला था. उनका कहना था कि इस कार्य के लिए उन्हें पुरुषों के विरुद्ध जाना होगा. बाद में दसवीं तक पढ़ी-लिखी जमुना टुडू ने गांव के लोगों से प्रश्न करना शुरू किया. वह लोगों को पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए जंगलों के महत्व बतातीं.

2004 तक जमुना की टीम में मात्र 4 सदस्य थे. लेकिन जमुना ने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे वह अपने मुहिम में सफल हो गई. आज उन्हें सभी लोग गर्व से लेडी टार्जन के नाम से पुकारते हैं. जमुना टुडू का विवाह चाकुलिया गांव में साल 1998 में हुआ. जमुना की बदौलत आज इस आदिवासी गांव में अच्छी विद्यालय और पक्की सड़कें हैं. उन्होंने गांव में विद्यालय और नलकूप के लिए अपनी भूमि भी दान की है. आज जमुना टुडू का यह अभियान आंदोलन का रूप ले चुका है और पूरे देश में चल रहा है. जमुना के द्वारा वनों की रक्षा के लिए लगभग 150 समितियां बनाई जा चुकी हैं, जिनमें लगभग 6000 सक्रिय सदस्य भी हैं.

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जमुना टुडू की उपब्धियां

जंगल बचाने की मुहिम को देखते हुए जमुना को साल 2013 में 'एक्ट ऑफ सोशल करेज' की श्रेणी में गॉडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड और 2014 में स्त्री शक्ति अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. साल 2016 में जब उन्हें भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना गया था तब महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी हो चुकी हैं. साल 2017 में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत द्वारा उन्हें वन संरक्षण के लिए वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवार्ड द्वारा सम्मानित किया गया था. वहीं 2019 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उनके ऊपर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बन चुकी है.

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