चाईबासा: दुनिया में विकलांगता सिर्फ नकारात्मक सोच है. इस बात को सच कर दिखाया है गुलशन लोहार ने. गुलशन पश्चिमी सिंहभूम के मनोहरपुर प्रखंड के बरंगा गांव का रहने वाला है और वो उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं.
गुलशन को जन्म से ही विकलांगता का अभिशाप मिला है, लेकिन उन्होंने अभिशाप को अपनी ताकत बना ली. उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और चुनौतियों को स्वीकार करते हुए पैरों को ही अपने हाथ का विकल्प बना लिया. गुलशन लोहार ने कड़ी मेहनत कर एमए और बीएड की परीक्षा पास की, जिसके बाद वे उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा स्कूल में बतौर शिक्षक नियुक्त हुए और अब बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं.
अटल इरादों से छुआ ऊंचाई
गुलशन लोहार जन्म से ही निशक्त होने के बावजूद भी अपने अटल इरादों की बदौलत ऊंचाइयों को छुआ. अपने शारीरिक कमजोरी और आने वाली चुनौतियों को उन्होंने समझते हुए जिंदगी के हर इम्तिहान में पास होने का संकल्प लिया. उसके बाद संघर्ष करते रहा और कामयाबी उनके कदम चूमती रही.
गुलशन ने बताया कि उन्हें बचपन से ही आभास हो गया था कि वे अकेला कुछ नहीं कर सकते. न ही वे कपड़ा पहन सकते और न ही शौच करने जा सकते. उसे हर काम के लिए दूसरे का मदद लेना पड़ेगी, बावजूद इसके उसने आत्मनिर्भर बनने का ठान लिया.
गुलशन ने मन में सोच लिया कि पढ़ाई के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है, लेकिन उनके भाई ने उन्हें पैर से लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वे निरंतर प्रयास करते रहे और लिखने में कामयाब हो गए. गुलशन ने पढ़ाई को ही अपना हथियार बनाया और अपने पैरों को दोस्त बना लिया.
उसके बाद पैरों के सहारे ही उन्होंने अपने शैक्षणिक जीवन के पहला पड़ाव स्कूल में जब एडमिशन लिया तो स्कूल में पढ़ने वाले सहपाठी उसे देखकर हंसते थे, लेकिन सभी की बातों को नजरअंदाज करते हुए उसने पढ़ाई में पुरजोर मेहनत की और 2003 में मनोहरपुर से मैट्रिक की परीक्षा दी और पास की.