चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर नगर परिषद में इन दिनों कई वार्ड पार्षद और कार्यपालक पदाधिकारी के साथ नगर परिषद की अध्यक्ष के बीच कई मुद्दों को लेकर विवाद शुरू हो गया है. अध्यक्ष और कार्यपालक दोनों ही एक-दूसरे के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगा रहे हैं. इन विवादों के बीज नगर परिषद के अधीन चलने वाली योजनाओं पर सीधा असर दिखने लगा है.
क्यों छिड़ी है जंग
वार्ड पार्षदों की मानें तो नगर परिषद अध्यक्ष केडी साह परिषद में आए कंबल का वितरण अपने मनमाने ढंग से करना चाहते हैं. जबकि पार्षद नियमानुसार जरुरतमंद को चिन्हित कर उनके बीच कंबल बांटने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि कंबल का वितरण जरुरतमंद के बीच कड़ाके की ठंड से पहले समय पर किया जाए जिससे लोग कड़ाके की ठंड से बच सके.
पार्षदों का कहना है कि पिछले 3 वर्षों में नगर परिषद अध्यक्ष ने नियम-कानून को ताक पर रखकर नगर परिषद अंतर्गत संचालित होने वाली योजनाओं की निविदा अपने चहेते संवेदकों के पक्ष में करते रहे हैं. लेकिन चक्रधरपुर नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी के आने से उनके मनमाने रवैये पर रोक लग गई है और यही कारण है कि कार्यपालक पदाधिकारी और नगर परिषद अध्यक्ष केडी साह के बीच विवाद गहराता जा रहा है.
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3 वर्षों से जारी है भ्रष्टाचार
पार्षदों की माने तो विगत 3 वर्षों के कार्यकाल में ही योजनाओं की सही ढंग से जांच की जाए तो नगर परिषद अध्यक्ष केडी साह और तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी की मिली भगत से हुए घोटालो की पोल भी खुल जाएगी.
कार्यपालक पदाधिकारी का हो गया है स्थानांतरण
विवादों के बीच कार्यपालक पदाधिकारी का स्थानांतरण हो गया है लेकिन कार्यपालक पदाधिकारी की मानें तो विभाग से उन्हें अपने पद पर यथावत रहने की अनुमति मिल गई है. वहीं उन्होंने अध्यक्ष पर नियम के विरूद्ध योजनाओं के निष्पादन करने को लेकर दबाव देने के मामले की भी पुष्टि की है.
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निविदा प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं
नगर परिषद अध्यक्ष का कहना है कि निविदा प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हो रही है. सभी कुछ नियमानुसार हो रहा है और आगे भी होगा. नगर परिषद से लेकर कार्यपालक पदाधिकारी सभी ने नगर परिषद को अड्डेबाजी की जगह बना ली है. उन्होंने कहा कि नगर परिषद कार्यालय पदाधिकारी का स्थानांतरण होने के बावजूद पदभार देने के बजाय मनमाने ढंग से अपने पद पर बने हुए हैं, जिसकी शिकायत विभागीय सचिव से लेकर चुनाव आयोग तक की जाएगी.
जनता हो रही विकास से महरूम
कुल मिलाकर देखा जाए तो पूरा मामला योजनाओं में साठ-गांठ, निजी स्वार्थ की राह में आ रही अड़चनों के कारण हो रहा है. पुरानी कहावत है कि दो हाथियों की जंग में नुकसान आखिर जंगल का ही होता है और यहां भी यही हो रहा है. कार्यपालक पदाधिकारी और नगर परिषद अध्यक्ष के बीच छिड़ी लड़ाई से चक्रधरपुर की जनता को विकास से महरूम होकर इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है.