रांची/चाईबासा: आदिवासी बहुत कोल्हान प्रमंडल के मुख्यालय चाईबासा में आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीति का चौसर सज चुका है. भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह पहली चाल चल चुके हैं. उन्होंने 7 जनवरी को चाईबासा में विजय संकल्प महारैली के जरिए हेमंत सरकार की घेराबंदी की थी. जिसका जवाब देने में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने ज्यादा वक्त नहीं लिया. उन्होंने खतियानी जोहार यात्रा निकालकर जवाब दिया.
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दोनों में समानता इतनी भर थी कि अमित शाह ने टाटा कॉलेज मैदान में पार्टी नेताओं के साथ मंथन किया था तो सीएम हेमंत सोरेन ने उसी मैदान में कोल्हान के विकास कार्यों की समीक्षा. फर्क इतना भर रहा कि अमित शाह ने टाटा कॉलेज मैदान में जनसभा को संबोधित किया था जबकि सीएम हेमंत ने चंद कदम की दूरी पर मौजूद खूंटकांटी मैदान में जनसभा की. एक और अंतर यह दिखा कि हेमंत सोरेन की सभा की तुलना में अमित शाह की सभा में ज्यादा भीड़ उमड़ी थी. लेकिन झामुमो के लोगों का दावा है कि सीएम के कार्यक्रम में सिर्फ चाईबासा से लोग पहुंचे थे. लेकिन अमित शाह की सभा के लिए पूरे प्रमंडल से लोगों को लाया गया था.
दोनों नेताओं के संबोधन में क्या रहा अंतर:केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा था झारखंड में भ्रष्टाचार चरम पर है. जनता परिवर्तन का मन बना चुकी है. भाजपा के पास झारखंड में किए गये विकास कार्यों की लंबी सूची है. भाजपा ने देश को सुरक्षित करने के साथ-साथ दुनिया में देश का सम्मान बढ़ाया है. लेकिन झारखंड सरकार ने सिर्फ भ्रष्टाचार किया. अमित शाह ने खुलै तौर पर हेमंत सरकार से अपील की थी कि घुसपैठिए की हिमाकत को रोकिए नहीं तो राज्य की जनता आपको माफ नहीं करेगी. उन्होंने 1932 पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसको लागू कर राज्य सरकार विभाजन क्यों करना चाहती है. उन्होंने कहा था मोदी नेतृत्व में उग्रवाद समाप्ति की ओर है. झारखंड में विकास का नया रास्ता खुलेगा.
जवाब में सीएम हेमंत सोरेन ने अमित शाह का नाम लिए बगैर केंद्र पर शब्दों के तीर चलाए. उन्होंने फिर दोहराया कि केंद्र में व्यापारी की सरकार है. चाणक्य ने कहा था कि जिस देश का राजा व्यापारी होगा, वहां की प्रजा भिखारी होगी. उन्होंने कहा कि केंद्र की सरकार रेलवे को प्राइवेट कर रही है. जगह जगह टोल प्लाजा बनाकर लोगों से पैस वसूले जा रहे हैं. कभी कहते थे कि चप्पल पहनने वाले हवाई जहाज पर चढ़ेगें लेकिन अब आम आदमी प्लेन का सफर नहीं सकता.
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क्यों मायने रखता है कोल्हान:तीन जिलों को यह प्रमंडल झामुमो का गढ़ बन चुका है. 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां की 14 सीटों में से सात सीटों पर झामुमो का कब्जा था. मोदी लहर के बाद भी भाजपा सिर्फ पांच सीटें ही जीत सकी थी. लेकिन 2019 के विस चुनाव में भाजपा पूरी तरह उखड़ गई. कुल 14 सीटों में स 11 सीटों पर झामुमो, दो पर कांग्रेस और एक सीट पर बतौर निर्दलीय सरयू राय की जीत हुई. यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में कोल्हान की सिंहभूम लोकसभा सीट से कांग्रेस की गीता कोड़ा ने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था. लिहाजा भाजपा किसी भी हाल में 2024 के लोकसभा चुनाव में सिंहभूम सीट पर कब्जा करना चाह रही है.
कोल्हान ने राज्य को दिए सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री:कोल्हान प्रमंडल में तीन जिले हैं और तीनों जिलों ने राज्य को मुख्यमंत्री दिए. यही नहीं राज्य गठन के बाद से अबतक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इसी प्रमंडल के नेता सबसे ज्यादा समय तक काबिज रहे. डोमिसाइल विवाद पर बाबूलाल मरांडी को हटाये जाने के बाद भाजपा ने इसी प्रमंडल के खरसांवा से भाजपा विधायक अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया था. बाद में 2005 के चुनाव के बाद अस्थिरता के दौर के बीच कांग्रेस ने जगन्नाथपुर से निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना दिया था. लेकिन 2014 में भाजपा ने जमशेदपुर पूर्वी से भाजपा विधायक रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाया था जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया. लेकिन वह न सिर्फ अपनी सीट बल्कि अपने प्रमंडल की किसी भी सीट को नहीं बचा सके थे.