पश्चिम सिंहभूम: जिला के सारंडा जंगल एशिया का प्रसिद्ध जंगल है. यहां रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग अब वाटर हार्वेस्टिंग मामले में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में जुट गए हैं. यह कार्य सारंडा वन प्रमंडल की ओर से करवाया जा रहा है. सारंडा के बीहड़ में रहने वाले जो लोग वनों की कटाई कर अपना जीवन यापन किया करते थे, उन्हें सारंडा वन प्रमंडल के कर्मचारियों ने जागरूक करने के बाद सारंडा में जगह-जगह चेक डैम के निर्माण में लगाया है.
झारखंड का 13% वन सारंडा में मौजूद है. यहां घने जंगलों के कारण वर्षा का रिकॉर्ड भी अच्छा रहता है, लेकिन सबसे बड़ी विडंबना ये है कि बारिश का पानी यहां रुकता नहीं है. पानी नदी के सहारे समुद्र में चला जाता है. सारंडा में भारी बारिश के कारण मिट्टी का कटाव होता है, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है. पूरे सारंडा में लगभग 4500 चेक डैम का निर्माण किया जा चुका है, जबकि आगे भी चेक डैम का निर्माण कार्य जारी है, जिसके कारण आज स्थिति बदल चुकी है.
60 हजार लीटर पानी चेक डैम में होता है जमा
साल 2019 में सारंडा वन क्षेत्र से धरती को 8.30 करोड़ लीटर पानी मिला है. यह आंकड़ा हर साल बारिश का है. वन विभाग के प्रयास से ऐसा पहली बार हुआ है कि जब 4500 चेक डैम के माध्यम से ऊंचे पहाड़ों से बहते हुए पानी को रोका जा रहा है. इस चेक डैम की ऊंचाई 3.30 फीट और 16 फीट चौड़ाई होती है. बनाए गए लगभग 4500 चेक डैम में लगभग 15 से 30 फीट तक पानी रुकता है. एक साल में लगभग 60 हजार लीटर पानी एक चेक डैम में जमा हो जाता है. इनमें से 20 हजार लीटर पानी धरती में समा जाता है. ऐसे में कुल 4500 चेक डैम के आंकड़े को जोड़ दिया जाए तो साल भर में 8:30 करोड़ लीटर पानी से अधिक का आंकड़ा सामने आता है.
किसानों को खेती के लिए मिल रहा पानी
सारंडा में चेक डैम बनना वहां के लोगों के लिए रोजगार का एक अवसर बन गया है. पहले लोग सारंडा वन क्षेत्र में वनों की कटाई करते थे और उन्हें बाजार में बेचकर अपनी जीविका उपार्जन किया करते थे. अब लगातार बनते चेक डैम की वजह से कई गांव के लोग इस अभियान से जुड़कर रोजगार पा रहे हैं और जो लोग पहले वनों की कटाई किया करते थे. अब यह पूरे सारंडा क्षेत्र में चेक डैम बनाने का काम कर रहे हैं. इसके साथ ही साथ चेक डैम की वजह से वहां के किसानों के खेतों को भी पानी मिल रहा है. चेक डैम निर्माण में काम कर रहे मजदूर बताते हैं कि वो पहले पेड़ों की कटाई की कर अपना जीवन यापन करते थे, लेकिन अब सारंडा वन प्रमंडल और जल छाजन कर्मियों के संचालित एलबीसीडी का कार्य गांव के पास ही जंगल में दिया गया है, जिससे वो अपना जीवन यापन कर रहे हैं और जंगलों से लकड़ी की कटाई और बिक्री करना भी बंद कर चुके हैं.