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झारखंड में बस किराया दोगुनी, भाजपा ने सरकार की चुप्पी पर उठाये सवाल

झारखंड में बस संचालकों द्वारा किराए में दोगुना वृद्धि किये जाने के निर्णय पर भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया है. इस निर्णय पर झारखंड सरकार से हस्तक्षेप और मध्यस्थता करने की मांग करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने कहा की राज्य सरकार और बस संचालकों के बीच चल रही रार का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ेगा.

Bus fares double in Jharkhand
कुणाल षाड़ंगी का जेएमएम पर निशाना, Bus fares double in Jharkhand

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Published : Aug 31, 2020, 9:13 PM IST

जमशेदपुरःझारखंड में बस संचालकों द्वारा किराए में दोगुना वृद्धि किये जाने के निर्णय पर भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया है. इस निर्णय पर झारखंड सरकार से हस्तक्षेप और मध्यस्थता करने की मांग करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने कहा की राज्य सरकार और बस संचालकों के बीच चल रही रार का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ेगा. भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार की उपेक्षा का प्रतिफल है कि निजी बस संचालकों द्वारा बस किराया दोगुनी करना उनकी विवशता हो चुकी है.

प्रदेश भाजपा प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी ने बस संचालकों के समक्ष उतपन्न कठिनाईयों को भी उन्होंने जायज बताते हुए मुख्यमंत्री और राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है. भाजपा ने कहा कि कोरोना काल की इस कठिन समय में जनता पहले की परेशान है. लॉकडाउन की वजह से बहुत से लोगों का रोजगार छिन गया है. इस दौरान कारोबार भी चौपट हो गया है. आमदनी के स्रोतों पर भी कोरोना की मार पड़ी है. आर्थिक मंदी के कारण हर वर्ग आज परेशान है. ऐसे में बिगड़ी आर्थिक हालत को पटरी पर लाने के लिए सरकार को जनहित में बड़े फैसले लेने चाहिए थे. दुर्भाग्यवश लोगों की भावनाओं के विपरीत सरकार बस किराया में दोगुनी बढ़ोतरी के निर्णय पर चुप्पी साधे हुए हैं. सरकार की चुप्पी का सीधा असर गरीब जनता की जेब पर पड़ने वाली है.

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भाजपा प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी ने कहा कि राज्य सरकार की चुप्पी इस बात का प्रमाण है कि निज़ी बस संचालकों द्वारा किराये में दोगुनी बढ़ोत्तरी के निर्णय पर झारखंड सरकार की मौन और अघोषित सहमति है. भाजपा ने मांग किया कि जनता की जेब पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को कम करने के लिए सरकार अविलंब निज़ी बस संचालकों के शिष्टमंडल संग वार्ता आयोजित कर मध्यस्थता की दिशा में पहल करें. महीनों से वस परिचालन बाधित रहने के बावजूद भी संचालकों पर टैक्स और अन्य वित्तीय बोझ है, सरकार इसे पाटने की दिशा में पहल करें. बस संचालकों की कठिनाइयों और मांगों पर भी केंद्र सरकार की तर्ज़ पर सहानुभूति पूर्वक चिंता करने की जरूरत है.

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