सिमडेगाः कोलेबिरा प्रखंड के बरसलोया पंचायत का बरटोली गांव, लगभग 50 घर और 300 के करीब आबादी. पूरा गांव एक अरसे से बदहाली के दौर से गुजर रहा है. जमाना आज कितना आगे निकल चुका है लेकिन इस गांव को एक अदद पुल तक मयस्सर नहीं हुआ है. जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाकर थक चुके ग्रामीणों ने अब आंदोलन का रास्ता चुन लिया है. सिमडेगा के बरटोली गांव में पुल बनाने की मांग को लेकर ग्रामीणों का जल सत्याग्रह हो रहा है.
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बरटोली गांव की बदहालीः गांव-गांव, शहर-शहर सड़कों का जाल बिछ रहा है. नदी नालों पर पुल-पुलिया का निर्माण कर प्रदेश में विकास की नयी इबारत लिखी जा रही है. लेकिन 50 घर की 300 आबादी वाला बरटोली गांव अब तक दुश्वारियों से जूझ रहा है. बरसात का महीना इनके लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होता. बारिश के दिनों में बरटोली गांव टापू में तब्दील हो जाता है. बीमार होने पर मरीज को स्वास्थ्य केंद्र ले जाने का कोई साधन नहीं है, कंधे पर ढोकर ग्रामीण मरीजों को नदी पार कराकर अस्पताल ले जाते हैं. इस गांव में पहले भी बीमार पड़ने और नदी में बहने से कई लोगों की मौत हो चुकी है.
स्कूली छात्रा दामिनी कुमारी कहती हैं कि उनके गांव के सुको सोरेंग की बीते दिनों नदी में बहने से मौत हो गई क्योंकि नदी के पानी का बहाव अत्यधिक था. पुल नहीं होने के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बारिश के दिनों में अगर कोई बीमार पड़ जाए या राशन खत्म हो गया तो फिर बड़ी मुश्किल हो जाती है. इसलिए वे लोग आने वाले चुनाव में वोट का बहिष्कार करेंगे, जब सरकार को उन लोगों की कोई परवाह ही नहीं तो फिर वोट किसके लिए करें.
इस प्रकार माइकल सोरेंग कहती हैं कि पुल नहीं होने के कारण बारिश के दिनों में आवागमन पूरी तरह बंद हो जाता है. पैदल नदी पार करने पर गले तक पानी भरा होता है. ऐसे में बच्चों का स्कूल जाना कैसे संभव होगा. बच्चे हो या बुजुर्ग सभी नदी के पानी कम होने का महीनों तक इंतजार करते हैं. समाजसेवी प्रेमशिला सोरेंग कहती हैं कि सुको सोरेंग पहली महिला नहीं है. इससे पहले भी नदी पार करने के क्रम में बहने से कई लोगों की मृत्यु हो चुकी है. खासकर गर्भवती महिलाओं और बीमार मरीजों को इलाज के लिए ले जाने में भारी मुश्किल होती है. गले तक पानी हो तो कुर्सी पर बैठाकर भी नदी पार कराना कैसे संभव होगा.
ढोलबीर नदी पर पुल बनाने की मांगः जिला में कोलेबिरा प्रखंड के बरसलोया पंचायत का बरटोली गांव बरसात के मौसम में टापू में बदल जाता है. ढोलबीर नदी में पानी भर जाने से लोग इसी गांव में कैद हो जाते हैं. पक्की सड़क से गांव की दूरी महज एक किलोमीटर ही है लेकिन इस दूरी को पार करना सात समंदर पार करने जैसा है. बारिश शुरू हो चुकी है और नदी का जलस्तर बढ़ रहा है. बीते शुक्रवार शाम यानी 30 जून की शाम एक बुजुर्ग महिला सुको सोरेंग इस नदी में बह गयी, वो अपनी बीमार पति के लिए दवा लेने निकली पर वापस लौटकर नहीं आ पायी. इस हादसे के बाद लोगों ने आक्रोशित होकर जल सत्याग्रह शुरू कर दिया.
इस हादसे ने लोगों को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया. इसके बाद बरटोली गांव के ग्रामीण नदी के बीचोंबीच खड़े होकर पुल नहीं तो वोट नहीं का नारा लगा कर शासन प्रशासन के खिलाफ विरोध जताया. ग्रामीणों का कहना है कि इस बार वो लोग चुनाव का पूरी तरह बहिष्कार करेंगे. आखिरकार कितने लोगों की जान जाने के बाद शासन और प्रशासन कुंभकरण नींद से जागेगी. क्योंकि लगातार मांग और शिकायतों के बाद भी अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई.
प्रशासन का जनता दरबार हो, कोलेबिरा विधायक नमन बिक्सल कोंगाड़ी या केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा हो, सभी को आवेदन देकर यहां के लोग थक चुके हैं. यहां तक कि विगत 19 मार्च को केंद्रीय मंत्री अपने तीन दिवसीय दौरे पर बरसलोया पहुंचे थे. इसी क्रम में स्कूली बच्चों से लेकर गांव की महिलाएं और बुजुर्गों ने उनका काफिला रोककर आवेदन सौंपा और पुल बनवाने की मांग की थी. जिस पर मंत्री ने जल्द पहल करने का आश्वासन भी दिया था. इतना ही नहीं बीते 24 मई को कोलेबिरा विधायक नमन बिक्सल कोंगाड़ी ने बरटोली गांव पहुंचकर लोगों के साथ संवाद किया और पुल की मांग पर पहल करने का आश्वासन दिया था. साथ ही नल जल योजना, बिजली व्यवस्था दुरुस्त कराने की बात कही थी. लेकिन अब तक मिले आश्वासन का नतीजा सिफर ही रहा.
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