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विकास से कोसों दूर सिमडेगा का पहाड़टोली गांव, जान हथेली पर रखकर करते हैं नदी पार

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Published : Nov 3, 2020, 8:13 PM IST

Updated : Nov 5, 2020, 7:39 PM IST

सिमडेगा के प्रखंड मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर पहाड़टोली गांव में पूरी तरह से बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. हालात ऐसे हैं कि लोग जान जोखिम में डालकर नदी के जरिए आवाजाही करते हैं. गांव के बच्चे भी 10-12 किलोमीटर लंबे पगडंडी और पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरकर स्कूल जाते हैं.

पहाड़टोली गांव
पहाड़टोली गांव

सिमडेगा: जिले का एक ऐसा गांव जहां आज भी ना तो सड़क की सुविधा है, ना पीने का स्वच्छ पानी और न ही मोबाइल नेटवर्क. यहां तक की छोटे बच्चों को स्कूल जाने के लिए 10-12 किलोमीटर लंबे पगडंडी और पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है.

पहाड़टोली गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

जलडेगा प्रखंड मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच बसा ये छोटा सा गांव अपने अतीत की पहचान को समेटे हुए वर्तमान के साथ संघर्ष कर रहा है.

लगभग 35 परिवारों के इस छोटे से गांव में लोगों की आवाजाही के लिए सड़क की सुविधा नहीं है. अपने घर जाने के लिए ग्रामीणों को समीप बहने वाली एक छोटी सी नदी को पार करके जाना पड़ता है.

बारिश के दिनों में पहाड़ों से उतरने वाली पानी के कारण पानी का जलस्तर नदी का जलस्तर काफी बढ़ जाता है, जिससे बच्चे हो या बूढ़े सभी ग्रामीणों को अपनी जान हथेली पर रखकर नदी पार करने को विवश होते हैं.

सर पर सामान का बोझ, कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ

विकास की किरणों से कोसों दूर इस गांव के ग्रामीणों की हालत एक मजबूर और बेबस इंसान से ज्यादा कुछ नहीं है. प्रत्येक साल के करीब चार-पांच महीने इस गांव में निवास करने वाले ग्रामीणों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

इस गांव के बच्चों को प्रत्येक वर्ष के पांच महीना स्कूल अपने स्कूल जाने के लिए अतिरिक्त करीब 12 किलोमीटर का लंबे रास्तों का सफर तय करना पड़ता है, जो पगडंडी और पहाड़ों से होकर गुजरती है.

एक तरफ जंगली जानवरों का भय, तो दूसरी ओर अच्छे भविष्य की लालसा इन दोनों के बीच संघर्ष करते छोटे-छोटे बच्चे जंगली हाथियों और जानवरों से बचते स्कूल पहुंचते हैं.

सिमडेगा जिला का यह सीमांत क्षेत्र है, जिसके बाद ओडिसा राज्य की सीमा लगती है. बारिश के दिनों में अपनी आवश्यकताओं के लिए यहां के ग्रामीणों को पड़ोसी राज्य ओडिसा पर निर्भर होना पड़ता है, क्योंकि उफनाती नदी को पार कर पाना जान जोखिम में डालने के बराबर होता है.

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यहां के ग्रामीणों को ना तो सड़क नसीब है, ना ही कोई स्वास्थ्य सुविधा और न ही नेटवर्क. इन 5 महीनों में कोई बीमार हो जाए तो घरेलू उपचार ही आखिरी सहारा होता है. क्योंकि स्वास्थ्य सुविधा के लिए पड़ोसी राज्य ओडिसा भी लगभग 15 किलोमीटर दूर है.

इलाज के अभाव में बच्चियों की मौत

जहां जाने के लिए पैदल 8 किमी. पैदल जाना पड़ता है. विदित हो कि कुछ दिन पूर्व ही सिमडेगा के गौरीडूबा गांव में तीन मासूम बच्चियों को सर्पदंश के बाद सड़़क और नेटवर्क सुविधा न होने के कारण समय पर स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल सकी थी. जिससे उनकी मौत हो गई थी.

ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि सिमडेगा के सभी सुदूरवर्ती गांवों को चिन्हित कर मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं.

गांव के सोमारू सिंह बताते हैं कि 5 महीना वे लोग काफी मुश्किल से गुजरते हैं. यदि किसी की तबीयत खराब हो जाए. इलाज कराना मुश्किल हो जाता है. वहीं शिव शंकर सिंह बताते हैं कि सिर में सामान और छोटे बच्चों को कंधे पर ढोकर वे लोग नदी पार करते हैं, जिससे जान पर आफत बनी रहती है.

Last Updated : Nov 5, 2020, 7:39 PM IST

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