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हॉकी चैंपियनशिप में खेल रही दिल्ली की जुड़वा बहनें, दर्द भरी है इनकी दास्तान - Story of 2 helpless twins of Delhi playing in hockey team

अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है. इसके लिए सिर्फ दृढ़ निश्चय करने की जरुरत होती है. इसे दिल्ली की दो जुड़वा बहनों ने साबित कर दिखाया है. परिवारिक परिस्थिति खराब होने और समाजिक तानों को सहकर वह हॉकी चैंपियनशिप में खेलने सिमडेगा पहुंची हैं.

2 helpless twins of Delhi playing in hockey team in simdega
हॉकी चैंपियनशिप में खेल रही दिल्ली की 2 जुड़वा बहनें

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Published : Mar 14, 2021, 8:51 PM IST

Updated : Mar 15, 2021, 7:34 PM IST

सिमडेगा: महिला के संघर्षों की कहानियां तो बरसों से पढ़ी और सुनी जा रही हैं कि समाज में उन्हें किस तरह से जीवन जीना पड़ रहा है. उन्हें लोगों की उपेक्षा, समाज के ताने और फिर हर कदम पर संघर्षों से गुजारना पड़ता है. बात जब अपने सपनों को पूरा करने की हो, आसमान में उड़ान भरने की हो तो उनके सामने हर कदम पर रुकावट की दीवार खड़ी हो जाती है और इसे अपने संघर्षों से ध्वस्त कर महिलाों को आगे बढ़ना पड़ता है.

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मां का मिला पूरा सहयोग

ऐसे हर संघर्ष में मां की ममता छांव बनकर अपने बच्चों की हिफाजत करती है. ठीक ऐसी ही कुछ बातें दिल्ली से सिमडेगा 11वीं सब जूनियर नेशनल महिला हॉकी चैंपियनशिप खेलने आई दो जुड़वा बहनों की है, जिसे हॉकी खेलने के लिए घर से बाहर तक ताना सुनना पड़ा . दिल्ली टीम से पहली बार नेशनल खेलने आई अंशिका और अंशु दोनों जुड़वा बहनें हैं, जो दिल्ली के खेराकला इलाके की रहने वाली है. वीएएलजीएस स्कूल में पढ़ने वाली कक्षा 10 की दोनों बच्चियां अपने स्कूल में हॉकी की प्रैक्टिस किया करती थी.

दयनीय है परिवार की हालत

अच्छा खेलता देख स्थानीय कोच वी चौहान ने बच्चियों को आगे खेलने और बढ़ने के लिए प्रेरित किया. इनके दम पर इन बच्चियों के पंख तो लग गए, लेकिन उड़ान भरने के लिए कदम-कदम पर रुकावटें खड़ी थी. घर में अंशिका और अंशु के पापा और अन्य रिश्तेदार इसके खिलाफ थे. पापा समाज के ताने सुनकर बच्चियों को हॉकी खेलने से रोकते थे, लेकिन उसे सहारा सिर्फ उसकी मां का मिला. मां पूजा देवी ने ढाल बनकर इन दोनों बेटियों के सपनों की हिफाजत की और उसे अपना भरपूर सहयोग दिया. बाद में मां के समझाने पर पापा ने भी सहयोग करना शुरू किया. कई प्रकार के आर्थिक दिक्कतें भी सामने आई, लेकिन इन दोनों ने संघर्ष जारी रखा.

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इंटरनेशनल टीम में खेलने की है चाहत

कठीन संघर्ष के बाद दोनों बहनें पहली बार सब जूनियर नेशनल खेलने सिमडेगा पहुंच गई. अपने संघर्षों को ईटीवी भारत से साझा करते हुए अंशिका ने बताया कि पहले तो उसे हॉकी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकर प्रैक्टिस करते-करते उसने अपने को यहां तक पहुंचाया. वहीं, अंशु बताती है कि जब उसने खेलना शुरू किया तो उसे समाज के कुछ लोगों के ताने भी सुनने पड़े, लेकिन मां ने उसका पूरा ख्याल रखा. इस राह में आर्थिक दिक्कतें भी आई, क्योंकि पापा की कमाई उतनी नहीं है, जिससे सब कुछ पूरा हो सके. अंशु कहती है कि अब तो उसकी चाहत नेशनल और इंटरनेशनल टीम में पहुंचना है और अपने देश का नाम रौशन करना है.

Last Updated : Mar 15, 2021, 7:34 PM IST

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