सरायकेला: मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने 14 वर्षों के वनवास के दौरान सरायकेला जिले के ईचागढ़ क्षेत्र में दिन गुजारे थे. इस दौरान उन्होंने इस क्षेत्र में ना सिर्फ दिन गुजारे बल्कि कई ऐसे काम भी किए जिनकी कई ऐतिहासिक निशानी क्षेत्र में आज भी मौजूद है. मान्यताओं पर आधारित इससे संबंधित कई दंतकथाएं क्षेत्र में आज भी सुनी और सुनाई जाती है.
ये भी पढ़ें-रांचीः श्रीराम मंदिर भूमिपूजन पर कांग्रेस ने मनाया जश्न, जलाए दीये
जमशेदपुर शहर से करीब 70 किलोमीटर पश्चिम-उत्तर की ओर स्थित ईचागढ़ के आदरडीह गांव की सीमा पर स्थापित माता सीता के मंदिर पर लोगों का अटूट विश्वास है. कुछ भक्त रोज मंदिर में पहुंचकर माता सीता का दर्शन-पूजन करते हैं. रामायण काल के अलावा क्षेत्र में महाभारत काल की भी कुछ निशानियां यहां मौजूद हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण जयदा मंदिर के पास खेलने के लिए चट्टान पर बनाए गए निशान और शिलालेख भी हैं. मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी इसी क्षेत्र में दिन गुजारे थे.
पेड़ की डाली पर रखकर माता सीता ने सुखा थी बाल
ईचागढ़ प्रखंड के चितरी, आदरडीह और चिमटिया के सीमा पर स्थित चट्टान पर माता सीता के पैर के निशान तो कुकडू प्रखंड के पारगामा क्षेत्र में भगवान श्रीराम के तीर की नोक से खोदे गए जलस्रोत लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है. क्षेत्र में प्रचलित दंतकथा के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण इस क्षेत्र में भी दिन बिताए थे. कहते हैं कि एक दिन माता सीता स्नान करने के लिए पानी की तलाश कर रही थी पानी नहीं मिलने पर उन्होंने प्रभु श्रीराम से पानी खोजने में मदद मांगी. प्रभु श्रीराम ने अपने धनुष-वाण से भूगर्भ जल का स्रोत निकाला, जहां माता सीता स्नान की. भूगर्भ जल के स्रोत से जो जलधारा बहने लगी उसे लोग अब सीता नाला के नाम से जानते हैं.
गर्मी के मौसम में भी नहीं सूखता सीता नाला का पानी
गर्मी के मौसम में भी सीता नाला का पानी नहीं सूखता है. जहां पर माता सीता ने स्नान किया था वहां अब भी जल का स्रोत निकलता रहता है. इसी नाला के किनारे एक अर्जुन का पेड़ था. कहते हैं कि माता सीता स्नान करने के बाद उसी अर्जुन के पेड़ की डाली पर अपने बाल रखकर सुखाई थी. उस पेड़ की डाली पर अंत तक बाल जैसे काले रेशे निकलते रहते थे.
ये भी पढ़ें-राजधानी में दीपोत्सव के आड़े आई बारिश, लोगों ने घरों में दीये जलाकर प्रभु राम को किया नमन
मौजूद हैं सीता माता के पैरों के निशान
सीता नाला के चट्टानों पर अब भी पैरों के निशान हैं. यहां एक चट्टान पर तीन जोड़े और एक चट्टान पर दांए पैर का एक निशान मौजूद है. अभी बरसात के कारण नाला में पैर का निशान डुबा हुआ है, जिसे लोग माता सीता के पैरों का निशान मानकर पूजा-अर्चना करते हैं. इसी स्थान पर माता सीता का एक मंदिर है. मंदिर के अंदर माता सीता की प्रतिमा भी स्थापित है जिसका निर्माण 1977 में एक सेवानिवृत शिक्षक ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर कराया था. कहते हैं कि यहां माता सीता का स्मरण कर मन्नत मांगने पर वह पूरी होती है. यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर एक दिवसीय मेले का आयोजन होता है.