सरायकेला:झारखंड मछली उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों की सूची में शामिल हो चुका है, यहां की मछलियां अब पूरे भारत में निर्यात की जा रही है. जिससे मत्स्य विभाग को बड़ा राजस्व प्राप्त हो रहा है. झारखंड सरकार नीलक्रांति की राह पर लगातार मत्स्य किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से मत्स्य पालन को भी बढ़ावा दे रही है.
सरायकेला खरसावां जिले ने पिछले 7 सालों में 63, 620 मैट्रिक टन मत्स्य उत्पादन के साथ राज्य में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. जिला मत्स्य विभाग लगातार मत्स्य पालन के लक्ष्य को निर्धारित समय से पूर्व ही प्राप्त कर रहा है. जिससे मत्स्य उत्पादन को लगातार बढ़ावा मिल रहा है.
तालाबों के बल पर प्राप्त हुआ निर्धारित लक्ष्य
सरायकेला जिले में 511 सरकारी तालाब हैं और 4700 निजी तालाब हैं. इन तालाबों में बड़े पैमाने पर मछली का उत्पादन हो रहा है. उत्पादन बढ़ाने के लिए जिला मत्स्य विभाग नए-नए तकनीक का भी सहारा लेता है. जिले में कई स्थानों पर आंध्रप्रदेश की तकनीक को अपनाया जाता है और जिले में उत्पादित मछलियों को बेचने के लिए बाहरी राज्यों में भी भेजा जाता है. इसके अलावा राज्य सरकार के कल्याणकारी योजनाओं से भी मत्स्य पालन और उत्पादन को लगातार गति प्रदान हो रही है, जिसके कारण मत्स्य उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने में विभाग अव्वल रहा है.
पिछले 7 सालों से लगातार सरायकेला जिला में मत्स्य उत्पादन में बेहतर प्रदर्शन किया है, एक नजर आंकड़ों पर डालें तो यह इस प्रकार है.
जीरा उत्पादन में भी अव्वल है जिला
सरायकेला- रसावां जिला ना केवल मत्स्य उत्पादन में आगे बढ़ रहा है साथ ही मछली के जीरा उत्पादन में भी जिला अव्वल स्थान पर रहा है. जीरा उत्पादन मामले में भी जिला मत्स्य विभाग आत्म निर्भर बना है. जिले में लगभग आठ हजार हैचरी बनाई गई है. जहां बड़े पैमाने पर जीरे से मत्स्य उत्पादन कराया जा रहा है. मत्स्य विभाग द्वारा प्रदान किए गए आंकड़े के मुताबिक जिले में कुल 32 करोड़ मछली के जीरे का उत्पादन होता है.
बैंक से कम ब्याज पर ऋण
प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत सभी लाभुक और मत्स्य कृषक बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ प्राप्त कर सकते हैं. पूर्व में निर्गत केसीसी के लाभार्थी भी मछली पालन के लिए केसीसी के क्रेडिट लिमिट में वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं. केसीसी के मत्स्य बीज, आहार, दवा, खाद, चूना, मिट्टी ले सकते हैं. जिसके लिए मत्स्य किसान मछुआरों को कम ब्याज पर बैंकों से ऋण प्राप्त हो सकेगा.
तालाबों और जलाशयों को मत्स्य पालन से जोड़ा जाएगा
जिले में मत्स्य पालन बड़े पैमाने पर होता है, मत्स्य पालन और उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से झारखंड मत्स्य विभाग द्वारा केज कल्चर और आरएफएफ कल्चर के जरिए मत्स्य पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है. वहीं, जिला मत्स्य विभाग भी इस तकनीक पर किसानों को फोकस करने के प्रति प्रेरित करता है मत्स्य पालक को नई तकनीक से जोड़ने के उद्देश्य से विभाग द्वारा समय-समय पर प्रशिक्षण आयोजित किए जाने का भी दावा किया जाता है. वैश्विक महामारी कोरोना को देखते हुए स्थानीय और प्रवासी मजदूरों को भी विभाग द्वारा मत्स्य पालन से जोड़ा जा रहा है. इसके तहत नए तालाब और जलाशयों से अब मत्स्य पालन से जुड़ेंगे, ताकि अधिक से अधिक रोजगार के अवसर लोगों को मिले और मत्स्य पालन भी बढ़े.
कई तालाबों का हुआ अतिक्रमण
सरायकेला जिले वर्षों पुराने छह प्रमुख सरकारी तालाब जिनका अतिक्रमण कर आज वहां बड़े-बड़े भवन और अपार्टमेंट बना दिए गए हैं. इन तालाबों में कभी खुली डाक से तालाब बंदोबस्ती की जाती थी, लेकिन वह आज केवल सरकारी फाइल और कागजों में ही सिमट कर रह गए हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं मत्स्य पालन भी प्रभावित हो रहा है और विभाग के लगातार प्रयास के बावजूद कई स्थानों पर लोगों को मत्स्य पालन का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है.
उपेक्षित हैं कई मत्स्य पालक
झारखंड में रिकॉर्ड मत्स्य उत्पादन करने के बावजूद जिले में कई एक ऐसे तालाब और जलाशय हैं, जहां के मत्स्य किसान सरकारी उपेक्षा ओं का दंश झेल रहे हैं, नगर निगम क्षेत्र अंतर्गत सीतारामपुर जलाशय के दर्जनो मत्स्य पालक बताते हैं कि विभाग द्वारा इस वर्ष इन्हें मत्स्य उत्पादन के लिए जीरा तक उपलब्ध नहीं कराया गया ऐसे में मत्स्य पालक चाह कर भी उत्पादन नहीं बढ़ा पा रहे हैं. वहीं, कई ऐसे भी मत्स्य पालक हैं जिन्हें लगातार मत्स्य विभाग के योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा. इधर, मत्स्य विभाग द्वारा वैसे तालाब और जलाशय जहां जीरा उत्पादन नहीं हो रहा हैं, उन्हें चिन्हित कर जल्द ही उत्पादन शुरू किए जाने का दावा किया गया है.
सरकार के साथ-साथ मत्स्य विभाग, मत्स्य पालकों को मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में आगे बढ़ाने को लेकर कई दावे करती है. सरकार और विभाग के प्रयास से जिला आज रिकॉर्ड मत्स्य उत्पादन कर रहा है. तो वहीं, राज्य मस्त्य उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. इन सबके बीच मत्स्य पालकों को विभाग और सरकार के प्रयासों का भरपूर लाभ मिलना अति आवश्यक हो जाता है, ताकि मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में लगातार आत्मनिर्भर बन रहा जिला आगे बुलंदियों को छुए.