सरायकेला: कहते हैं इंसान की गरीबी उससे कुछ भी करा लेती है. विपरीत परिस्थिति में उन काम करने के लिए लोगों को मजबूर होना पड़ता है जिनसे वो अक्सर दूर भागते हैं. जिस स्थान पर कोई आदमी एक मिनट तक खड़ा नहीं हो सकता. वहां कई ऐसे लोग हैं, जो अपना और अपने परिवार के पेट पालने के लिए दिनभर रहकर काम करते हैं. सरायकेला जिला के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में लगभग हर दिन ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है. यहां मशीनों से निकलने वाले कल-पुर्जों के कचरे से कई परिवार का पेट पलता है. लोग इसको बेचकर परिवारों का पेट पाल रहे हैं. इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को सुबह से इंतजार रहता है कि कब कारखाना से कचरा बाहर निकलेगा और यह उस कचरे से लोहा चुनकर अपने दिनभर का गुजारा कर सकेंगे.
मशीनरी कचरा से पलता है पेटः लोहे के टुकड़े से मिलती है दो वक्त की रोटी - लोहे का स्क्रैप
सरायकेला जिला के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार दे रहा है. कारखाना से निकलने वाला स्क्रैप और कचरा इलाके के कई लोगों का पेट पाल रहा है. आइये जानते हैं कैसे ?
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लॉकडाउन और औद्योगिक मंदी में हुआ था बुरा हाल
कोरोना काल के दौरान लॉकडाउन में अधिकांश उद्योग और कल-कारखाने बंद थे. लिहाजा मशीनरी और कलपुर्जे भी नहीं चलते थे. ऐसे वक्त में इससे जुड़े कई लोगों को अपना और अपने आश्रितों का पेट पालने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इस धंधे से जुड़े कुछ मजदूर बताते हैं कि उस वक्त सरकार की ओर से जो चावल आपूर्ति की जाती थी, उसे ही खा कर ये गुजर-बसर कर रहे थे. हालांकि अब धीरे-धीरे परिस्थितियां सामान्य हो रही है और उद्योग धंधे भी रफ्तार पकड़ रही है. ऐसे में मशीनरी कचरा बेचने वाले लोगों का कामकाज भी धीरे-धीरे ठीक-ठाक हो रहा है.
आज औद्योगिक क्षेत्र के इन हजारों कंपनियों में प्रत्यक्ष रूप से लाखों मजदूर और कर्मचारी जुड़कर अपना गुजारा कर रहे हैं. लेकिन यह बड़ा रोचक है कि उद्योगों से निकलने वाले इन कचड़ों से भी सैकड़ों लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पा रहे हैं. जरूरत है एक एक बेहतरीन प्रयास की ताकि मशीनों के कचड़ों को चुनने वाले इन लोगों के जिंदगी में बदलाव आए और ये भी सम्मान से जिंदगी जी सके.