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202 सालों में पहली बार सादगी के साथ हुई चड़क पूजा, जानिए क्या है इतिहास - 202 साल पुरानी है दिंडली की प्रसिद्ध चड़क पूजा

दिंडली का पौराणिक शिव मंदिर आज भी अपने पौराणिक इतिहास काल को संजोए हुए हैं. 1818 से लगातार यहां प्रतिवर्ष जून के दूसरे सप्ताह के सोमवार और मंगलवार को चड़क पूजा और मेले का आयोजन किया जाता रहा है, लेकिन इस साल पहली बार 202 साल के इतिहास में बिना मेले और भीड़भाड़ के सिर्फ परंपरा का निर्वहन करते हुए पूजा हुई.

chadak Puja
मेले पर ग्रहण

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Published : Jun 10, 2020, 7:25 PM IST

Updated : Jun 10, 2020, 7:44 PM IST

सरायकेला:वैश्विक महामारी और भारत में राष्ट्रीय आपदा घोषित कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा ऐसा बना हुआ है कि अब इंसान तो इंसान भगवान भी इसके संक्रमण से अछूते नहीं हैं, सरायकेला जिले के पौराणिक दिंडली शिव मंदिर में विगत 202 सालों से आयोजित हो रहे चड़क पूजा पर भी इस संक्रमण का खतरा इस साल देखने को मिला, जहां 202 साल में पहली बार सादगी पूर्ण तरीके से सिर्फ पूजा-अर्चना संपन्न की गई.

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1818 से चली आ रही है चड़क पूजा की परंपरा

दिंडली का यह पौराणिक शिव मंदिर आज भी अपने पौराणिक इतिहास काल को संजोए हुए हैं. सन 1818 से लगातार यहां प्रतिवर्ष जून के दूसरे सप्ताह में पड़ने वाले सोमवार और मंगलवार को चड़क पूजा के साथ-साथ मेले का भव्य आयोजन किया जाता हैं, लेकिन इस साल पहली बार 202 सालों के इतिहास में बिना मेले और भीड़भाड़ के सिर्फ परंपरा का निर्वहन करते हुए पूजा संपन्न कराया गया. वह भी सामाजिक दूरी नियमों का पालन करते हुए.

महामारी और अकाल दूर करने के लिए शुरू हुई थी पूजा

चड़क पूजा से जुड़े कई रोचक गाथाएं यहां आज भी प्रचलित हैं. मान्यता है कि तकरीबन 202 साल पूर्व वर्ष 1818 में दिंडली गांव में भयंकर अकाल और महामारी फैली थी, बिना बारिश हर ओर सुखाड़ पड़ा था. ऐसे में लोगों ने यहां के पौराणिक शिव मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की और मन्नतें मांगी थी. उस वक्त कई भक्तों ने अपने शरीर को भी नुकीले कील से छिदवाए और भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था प्रकट की. जिसके बाद से ही यहां प्रतिवर्ष अच्छी बरसात होने लगी और अकाल का नामोनिशान भी मिट गया था.

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सार्वजनिक पूजा कमेटी ने किया था रद्द

कोरोना संकट को देखते दिंडली पौराणिक शिव मंदिर पूजा कमेटी ने पूर्व में ही सार्वजनिक पूजा आयोजन को रद्द कर दिया गया, साथ ही साथ यहां आयोजित होने वाले मेले और छऊ नृत्य प्रतियोगिता आयोजन को भी सरकार के आदेश के अनुपालन करते हुए रद्द किया गया. यहां की स्थानीय वार्ड पार्षद राजरानी महतो बताती हैं कि 1818 में जिस परंपरा की शुरुआत की गई वह आज भी कायम है, जबकि पूजा कमेटी के अध्यक्ष लालटू महतो ने कहा कि संक्रमण के खतरे को देखते हुए सरकार के नियमों का पालन करते हुए ही पूजा को संपन्न कराया जा रहा.

202 साल पहले मानव पर आए जिस विपदा को लेकर इस पूजा की शुरुआत की गई थी, वहीं वर्तमान में 202 साल बाद एक बार फिर मानव जाति पर आए इस कोरोना विपदा को टालने पूजा की गई है. ताकि सब कुछ पहले जैसा हो जाए और भक्त बड़ी संख्या में जुड़कर अपने आराध्य की एक बार फिर धूमधाम से आराधना कर सकें.

Last Updated : Jun 10, 2020, 7:44 PM IST

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