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छठ पूजा में कोसी भराई का है काफी महत्व, जाने क्यों होता है कोसी भराई - सरायकेला में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का समापन

सरायकेला में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का समापन हो गया है. बता दें कि छठ पूजा में एक ओर भगवान सूर्य देव की अराधना की जाती है तो वहीं छठ पूजा के दौरान कोसी भराई का भी एक अलग ही महत्व माना जाता है.

कोसी भराई का महत्व

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Published : Nov 3, 2019, 11:23 AM IST

सरायकेला: जिले में रविवार को उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने के बाद चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का समापन हो गया है. चार दिनों तक चारों ओर भगवान भास्कर की आराधना को लेकर भक्ति का माहौल बना हुआ था. महापर्व छठ पूजा में एक और जहां भगवान भास्कर की आराधना करते हुए अस्ताचलगामी और उदीयमान भगवान सूर्य देव को अर्घ्य देने का महत्व है तो वहीं पूजा के दौरान कोसी भराई का भी महत्व काफी अहम माना जाता है.

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कोसी भराई की विधि
छठ पूजा के दौरान लोग अपने-अपने घरों में कोसी भरते हैं. इस पूजा प्रक्रिया के तहत 9 या 11 गन्ने को एक दूसरे के साथ संयुक्त रूप से बांधकर पिरामिड का रूप दिया जाता है. इससे पहले कोसी भराई वाले स्थान पर हल्दी और चावल के लेप से अल्पना बनाया जाता है. इसके बाद गन्ने को खड़ा कर सबसे ऊपर वाले स्थान पर लाल रंग के कपड़े या गमछे में पूजा सामग्री जिसमें मुख्य रूप से चना शामिल होता है उसे बांधा जाता है. गन्ने के इस आकृति के ठीक नीचे बीचों बीच मिट्टी के बने हाथी या गजराज देवता को स्थापित किया जाता है. जिन्हें भोजन स्वरूप गेहूं, अनाज आदि प्रदान किया जाता है.


इसके अलावा गन्ने के आकृति के चारों तरफ मिट्टी के बर्तन में छठ पूजा के प्रसाद को रखा जाता है. जिसके बाद व्रती और महिलाएं इस गन्ने के आकृति के पास बैठकर पूजा करते हैं और भगवान भास्कर की आराधना करते हुए छठ गीतों को गाया जाता है. जिससे माहौल पूरा भक्तिमय हो जाता है.


क्या है मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि लोग अपने-अपने घरों में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना को लेकर कोसी भरते हैं. वहीं मूर्ति के गजराज को आमंत्रण दिया जाता है ताकि वह आकर प्रसाद ग्रहण करें और आशीर्वाद के रूप में सुख, सौभाग्य, समृद्धि दें.

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