झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

सरायकेला में चड़क पूजा की परंपरा 203 साल पुरानी, जानें भक्त शरीर में क्यों चुभवाते हैं सुई - रजनी फोड़ा

सरायकेला में चड़क पूजा की परंपरा 203 साल पुरानी है. धूमधाम से की जाने वाली चड़क पूजा पर दो सालों से कोरोना का असर पड़ा है, पूजा में भव्यता नहीं है. लेकिन श्रद्धालु कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए इस पूजा को करने की तैयारी में जुटे हैं.

Chadak Puja tradition in Seraikela is 203 years old, People prick needles in body in worship
सरायकेला में चड़क पूजा की परंपरा 203 साल पुरानी

By

Published : Jun 9, 2021, 4:13 PM IST

Updated : Jun 9, 2021, 5:03 PM IST

सरायकेला: जिले के आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में दिण्डली बस्ती में 1818 ईस्वी से लगातार ग्रामीण चड़क पूजा का आयोजन करते आए हैं. 203 साल से यह परंपरा जारी है. हालांकि 2 वर्ष से कोरोना संक्रमण की वजह से पूजा और मेले की भव्यता प्रभावित हुई है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार और मंगलवार को गांव को सुरक्षित रखने के लिए की जानी वाली इस पूजा में ग्रामीण कोरोना के प्रकोप को कम करने के लिए प्रार्थना करेंगे.

इसी प्राचीन मंदिर में की जाती है चड़क पूजा
ये भी पढ़ें-अमावस्या को लेकर ना हों कंफ्यूज, यहां जानिए वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्तइस तिथि को होगी चड़क पूजा


सन 1818 ईस्वी से ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार और मंगलवार को प्रतिवर्ष सरायकेला में चड़क पूजा का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष का पहला सोमवार 14 जून को और पहला मंगलवार 15 जून को पड़ रहा है. स्थानीय ग्रामीण चड़क पूजा के बाद ही अपने खेती और गृहस्थी के कार्य की शुरुआत करते हैं. वर्षों से चली आ रही है परंपरा में ग्रामीण भक्तों की गहरी आस्था है और मान्यता है कि इस पूजा के दौरान भक्त भगवान शिव से जो भी मुराद मांगते हैं, वह जरूर पूरी होती है.

जानें चड़क पूजा पर क्या कहती हैं श्रद्धालु
यह है मान्यताबताया जाता है तकरीबन 203 वर्ष पूर्व दिण्डली गांव में बारिश न होने से भयंकर अकाल पड़ा था. लोग भी एक के बाद एक बीमार पड़ रहे थे और अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे, तभी ग्रामीणों ने ज्येष्ठ माह में दिण्डली के प्राचीन शिव मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की. फिर इसके साथ ही चड़क पूजा की शुरुआत की गई जो आज भी जारी है. मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के दूसरे मंगलवार को पूजा समाप्त होने के बाद भगवान इंद्र देव प्रसन्न होते हैं और फिर मूसलाधार बारिश होती है. इसी के चलते इस पूजा से यहां खेती गृहस्थी संबंधित शुभ कार्य प्रारंभ किए जाते हैं.
सरायकेला में दिंडली के शिव मंदिर में देवी-देवताओं की पूजा के लिए लगती है भीड़

ये भी पढ़ें-202 सालों में पहली बार सादगी के साथ हुई चड़क पूजा, जानिए क्या है इतिहास

मन्नत पूरी होने पर भक्त इसलिए चुभवाते हैं सुईश्रद्धालुओं के मुताबिक चड़क पूजा मेले में जिन भक्तों की मन्नत पूरी होती है, वह अगले साल पूजा में शामिल होकर अपने शरीर में लोहे की सुई चुभाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं. इस प्रक्रिया को रजनी फोड़ा कहा जाता है. कहते हैं कि भक्त अपने शरीर में लोहे की सुई आसानी से चुभवा लेते हैं और उन्हें कोई दर्द तक नहीं होता. हालांकि विगत 2 साल से कोरोना प्रकोप के कारण यहां कोई आयोजन नहीं हो रहा और केवल परंपरा के चलते पूजा पाठ किया जा रहा है.
सरायकेला के दिंडली बस्ती में चड़क पूजा की जानकारी देतीं श्रद्धालु
सरायकेला के दिंडली में प्राचीन शिव मंदिर में पूजा करते श्रद्धालु

पूजा में 13 किस्म के फल-फूल की जरूरत

दिंडली बस्ती के श्रद्धालुओं ने बताया की चड़क पूजा में 13 किस्म के फल-फूल की जरूरत होती है. जिस पर आने वाले खर्च को ग्रामीण मिल जुलकर उठाते हैं. इसके लिए चंदा एकत्र कर उससे सामान जुटाकर मंदिर पहुंचते हैं और पूजा होती है.

Last Updated : Jun 9, 2021, 5:03 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details