सरायकेला: जिला के औद्योगिक क्षेत्र से सटे आसंगी और बरगीडीह गांव के बीच यह है जमाई पाड़ा, वैसे तो यह गांव भी अन्य गांव के ही तरह विकसित हुआ. यहां बसने वाले जमाइओं के कारण गांव की एक अलग ही पहचान हो गई. दरअसल तकरीबन 30 वर्ष पहले जब आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में कल कारखाने तेज रफ्तार से चल रहे थे और औद्योगिक विकास चरम पर था तब हजारों लोगों को यहां रोजी रोजगार मिलता था. यहां ना सिर्फ सरायकेला जिला बल्कि इससे सटा जमशेदपुर और पश्चिम सिंहभूम जिले के अलावा अन्य सीमावर्ती राज्यों से भी औद्योगिक क्षेत्र में काम करने बड़ी तादाद में लोग पहुंचे थे. औद्योगिक क्षेत्र के आसपास उस वक्त कई गांव विकसित हुए जहां लोग काम करने के दौरान बस गए. इनमें से ही एक गांव है जमाई पाड़ा. 30 वर्ष पहले औद्योगिक क्षेत्र से सटे गांव के लोगों ने अपने बेटियों की ब्याह औद्योगिक क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों से की. उस वक्त लोग यह चाहते थे कि उनके पास बेटी और दामाद रहे. इसी उद्देश्य से लोगों ने आसंगी गांव के पास बेटी और जमाई को बचाने के उद्देश्य से घर बनाना शुरू किया जैसे-जैसे वक्त बीतता गया वैसे वैसे यहां जमाईओ की संख्या भी बढ़ती गई और इस गांव का नाम जमाई पाड़ा के रूप में विख्यात हो गया.
1967 के अकाल के बाद चल पड़ा था सिलसिलाऐसा माना जाता है कि साल 1967 में जब भयंकर अकाल पड़ा और लोग अकाल से उबरने पूजा-पाठ और कई हथकंडे अपना रहे थे. इस बीच किसी पुरोहित ने गांव के लोगों को बताया कि अगर जमाई को जमीन दान में देकर बसाया जाए तो अच्छी बारिश होगी और गांव में खुशहाली आएगी. तब कुछ लोगों ने जमाई को जमीन दान में देकर बसाने की परंपरा शुरू की और बाद में यह सिलसिला आगे ही बढ़ता गया. जिसे हाल के दिनों तक ग्रामीणों ने निभाया है. लेकिन अब यह परंपरा रुक सी गई है.
जमाई राजा बेटी लक्ष्मी का रूप
वर्षों पहले जब जमाई लोग यहां बसने लगे तो लोगों ने जमाई बाबू को जमाई राजा और बेटी को लक्ष्मी का रूप माना और फिर बेटी दामाद को जमीन दान में दे कर इनके जीवन गुजर बसर करने के लिए घर भी बना कर दिए. धीरे-धीरे यह परंपरा आगे बढ़ती गई और उस वक्त 100 से भी अधिक लोग जो घर जमाई बने यहां बसते चले गए.
गांव में जमाई की थी बड़ी इज्जत
आसंगी और बरगीडीह गांव के बीच बेटियों और दमादो को बसाने के उद्देश्य से जमाई पाड़ा विकसित हुआ. सालों पूर्व गांव के लोगों ने बेटी और दामाद को यहां घर बना कर दिया तो कई लोगों ने अपनी संपत्ति बेचकर यहां जमाई लोगों को बसाया. इस गांव में बसे अधिकतर लोग आसपास लोगों के या तो जमाई थे या जीजा, लिहाजा इस गांव में पुरुषों की बड़ी इज्जत थी. जैसे-जैसे वक्त बीतता गया और औद्योगिक कामकाज कम होने के साथ-साथ गांव के अधिकतर जमाई आज पलायन कर चुके हैं.
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औद्योगिक विकास के कारण गांव का भी हुआ था विकास
वर्षों पूर्व औद्योगिक विकास तेज होने के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में भी विकास की बयार बही थी. इसका नतीजा था कि औद्योगिक क्षेत्र के आसपास कई गांव विकसित हुए और बड़ी आबादी यहां बसी, आबादी बसने के साथ-साथ गांव और आसपास के क्षेत्रों का विकास भी हुआ. वक्त के साथ-साथ विकास का पहिया थम सा गया. आज जमाई के इस गांव में कई समस्याएं जस की तस बनी हुई है. गांव का मुख्य सड़क बदहाली की दास्तां बयां कर रहा है, जबकि औद्योगिक कामकाज ठप्प होने के कारण अधिकतर लोग अब दूसरे रोजगार पर आश्रित हो गए हैं.
सात से आठ जमाई ही बचे हैं अब गांव में
कभी जब औद्योगिक विकास परवान चढ़ा था, तब बड़ी संख्या में लोग औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार की तलाश लेकर यहां आए थे. बीते कई सालों से औद्योगिक मंदी और रोजगार में आई कमी की वजह से गांव में वर्षों पूर्व बसे कई जमाई पलायन को विवश हो गए और अपने घर बेचकर दूसरे स्थान पर जा बसे. 30 साल पहले जहां गांव में सैकड़ों की संख्या में जमाई बाबू रहते थे, वहां अब यहां महज सात से आठ जमाई है रह रहे हैं. अब इस गांव की आबादी भी अब महज केवल डेढ़ सौ तक सिमट कर रह गई है.
आज भले ही लोग घर जमाई कहलाने में शर्म महसूस करते हैं. वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार इस गांव में दमाद को बसाना शुभ माना जाता था. वर्षों पुरानी परंपरा में दामाद को जमीन दान करने से घर परिवार और गांव की तरक्की होती थी. लोग इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे थे. वक्त बीतने के साथ रीतियां और परंपराएं भी बदल गई है. अब यहां के लोगों को इस बात की आस है कि फिर आने वाले दिन बहुरेंगे औद्योगिक विकास के साथ-साथ क्षेत्र का विकास होगा और फिर बेटी लक्ष्मी और जमाई राजा शायद फिर से यहां बस पाएंगे.