साहिबगंज:मुनव्वर राना ने लिखा है-"चलती फिरती आंखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी मां देखी है". मां की तुलना जन्नत से की गई है. वैसे तो मां-बेटे के रिश्ते को शब्दों में पिरोया नहीं जा सकता और बच्चों के लिए तो मां का हर दिन व्रत है, लेकिन साल में ऐसा एक दिन होता है जब मां अपने बच्चों के लिए विशेष व्रत करती है और उस व्रत का नाम है जिउतिया. ज्यादातर घरों में यह पर्व होता है लेकिन इस दिन सबसे ज्यादा दुख वैसी मां को होता है जिनके बच्चों ने उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ दिया है. बस आस के सहारे जिंदगी कट रही है. लेकिन दूर होने के बावजूद मां अपने बच्चों की लंबे उम्र के लिए व्रत करती है और खुशहाली के लिए प्रार्थना करती है.
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पता नहीं कब आएगा बेटा...
साहिबगंज के वृद्धाश्रम में रह रही एक मां हैं विमला देवी जिनकी दो बेटी और दो बेटे हैं. सभी की शादी हो गई. बेटी ससुराल चली गई और बेटा परिवार के साथ बेंगलुरू में बस गया. जब तबीयत खराब होने लगी तब वृद्धाश्रम ही जीने का सहारा बना. विमला देवी को यह मलाल नहीं है कि उनके बच्चे देखते नहीं हैं फिर भी बच्चों की खुशी और सलामती के लिए हर साल जिउतिया व्रत करती हैं. बेटे की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं. विमला बहुत कुछ कहना चाहती हैं लेकिन हंसते हुए टाल देती हैं. वह कहती हैं कि एक साल पहले बेटे से बात हुई थी. फोन आएगा तो हम दोनों का समाचार लेगा. बेटे ने कहा है कि छठ महापर्व में परिवार के साथ आएगा, तभी मुलाकात होगी.