साहिबगंज: लॉकडाउन के कारण पूरे देश में लगभग सभी काम ठप पड़ा हुआ है. सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर जिला प्रशासन काफी सख्त रवैया अपना रहा है. झारखंड में लगातार कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है. इसे देखते हुए शहर के पेयजल आपूर्ति योजना को बंद कर दिया गया है.
साहिबगंज के पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसी जहरीला मिश्रण पाया जाता है. जिलेवासियों को शुद्ध पेयजल आज तक नसीब नहीं हो पाया है. शुद्ध पेयजल की मांग को लेकर कई सामाजिक संगठन के साथ-साथ आम लोग वर्षों से आंदोलन कर रहे थे, जिसके बाद किसी तरह से शहरी पेयजल आपूर्ति योजना की शुरुआत हुई, लेकिन यह योजना अबतक पूरी नहीं हो सकी. इस आपूर्ति पर किसी न किसी तरह से ग्रहण लगता ही आ रहा है.
सीएम हेमंत ने 2013 में दी थी सौगात
झारखंड में साल 2013 में जेएमएम की 14 महीने के लिए सरकार बनी थी. जिसमें हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने थे. उस समय ही साहिबगंजवासियों को जलापूर्ति योजना की सौगात दी गई थी. जिससे लोगों को शुद्ध पेयजल मिल सके. शुरुआती दौर में इस योजना का टेंडर गुजरात की दोशियन कंपनी को दिया गया था, लेकिन समय पर इस योजना को कंपनी ने पूरा नहीं किया. जिसके बाद राज्य में बीजेपी की सरकार आने के बाद दोशियन कंपनी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया. बीजेपी सरकार के कार्यकाल में इस योजना का फिर से टेंडर हुआ. परमार कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर जो बनारस की कंपनी है, उसे इस योजना को पूरा करने का जिम्मा मिला है. 22 करोड़ की लागत से इस योजना को तैयार कर कंपनी को 15 महीना के अंदर जिला प्रशासन को सुपुर्द कर देना है. हालांकि पूर्व की कंपनी ने इस योजना को 80 फीसदी तक पूरा कर दिया है. शहर में अंडर ग्राउंड पानी का पाइप भी बिछ चुका है.
जलापूर्ति योजना का काम ठप दिसंबर 2020 में ही होना है काम पूरा
दिसंबर 2020 तक इस योजना को पूरा कर जिला प्रशासन को सुपुर्द करना है, लेकिन लॉकडाउन में योजना का काम ठप पड़ा हुआ है. जिससे लोगों में निराशा छा गई है.
सुबह-शाम नलकूप में आती है पानी
साहिबगंज डिले में पानी की घोर किल्ल्त है. पीएचडी विभाग ने जिले में कहीं-कहीं नलकूप लगाया है, जिसमें सिर्फ सुबह और शाम पानी आती है. लोगों को इसी नलकूप पर निर्भर रहना पड़ता है. इस नलकूप में जबतक बिजली रहती है तबतक पानी आती है. बिजली जाते ही पानी आना बंद हो जाता है. नलकूप पर सुबह और शाम पानी लेने वालों की भारी भिड़ लगी होती है. सैकड़ों लोग दर्जनों डिब्बा, बोतल लिए कतार में खड़े रहते हैं. कभी कभी पानी के लिए लोगों में आपसी विवाद भी हो जाता है. कुछ जगहों पर चापाकल लगा हुआ है, जिसमें आधा में तो पानी आती है, और आधा सूखा पड़ा हुआ है. इस अस्थायी व्यवस्था से लोगों को काफी परेशानी होती है.
शुद्ध पेयजल अबतक नहीं हुआ नसीब
स्थानीय लोगों का कहना है कि शुद्ध पेयजल आज तक नसीब नहीं हुआ है. आर्सेनिक फ्लोराइड पानी पीने के लिए लोग मजबूर हैं. इस पानी से कई तरह की बीमारी हो रही है. शहरी पेयजल आपूर्ति योजना वर्षों से तैयार हो रही है, लेकिन आज तक पूरा नहीं हो सका. दूसरी बार चालू भी हुआ तो लॉकडाउन के कारण काम ठप हो गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जिला प्रशासन की उदासीन रवैया के कारण कोई भी कंपनी समय से पहले काम पूरा नहीं कर पा रही है.
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लॉकडाउन में कामकाज ठप
शहरी पेयजल आपूर्ति योजना के साइड इंचार्ज का कहना है कि लॉकडाउन के कारण फिलहाल काम रुका हुआ है, डेढ़ साल में काम पूरा करना था, जिसमें 6 महीना गुजर चुका है. उन्होंने कहा कि 3 मई के बाद सरकार अगर लॉकडाउन में छूट देती है तो हमारा प्रयास होगा कि जल्द से जल्द काम को खत्म करें, जिससे जिलेवासियों को शुद्ध पेयजल मिल सके.
वहीं पेयजल पदाधिकारी ने कहा कि लॉकडाउन के कारण काम रुका हुआ है, दूसरी बार बनारस की कंपनी परमार कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर को काम मिला है, जिसे 22 करोड़ की लागत से शहरी पेयजल आपूर्ति के अधूरे काम को पूरा करना है. इस कंपनी को 15 महीने का समय मिला है, काम जिस रफ्तार से चल रहा था दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक काम पूरा कर देने का लक्ष्य था, लेकिन लॉकडाउन के वजह से सारा काम ठप पड़ चुका है, आशा है 3 मई के बाद काम फिर चालू होगा और जिलेवासियों को जल्द शुद्ध पेयजल मिलेगा.