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सालों से अधर में लटका है डॉल्फिन अभयारण्य, साहिबगंज में दो महीने में दो डॉल्फिन की मौत

साहिबगंज की गंगा में दो महीने में दो डॉल्फिन की मौत हो गई है. डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए बिहार के विक्रमशिला डाॅल्फिन अभयारण्य की तर्ज पर साहिबगंज में भी गंगा डॉल्फिन अभयारण्य बनाया जाना था, लेकिन प्रशासन इसकी सुध नहीं ले रहा है.

dolphin is not safe in ganga river in sahibganj
साहिबगंज की गंगा

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Published : Feb 12, 2021, 2:33 PM IST

साहिबगंजः राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन साहिबगंज की गंगा में सुरक्षित नहीं है. तस्कर इन पर हावी है. तस्कर डॉल्फिन का शिकार कर महंगे दाम में बेंच रहे हैं, लेकिन किस वजह से डॉल्फिन मृत अवस्था में मिल रही है. इस पर जिला प्रशासन मौन है. झारखंड-बंगाल सीमा के पास कामरटोला के नजदीक नाव घाट में मृत डॉल्फिन को देखा गया था. दो महीने में यह दूसरी घटना है जब राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन गंगा में मृत अवस्था में पाई गई है. डॉल्फिन की मौत वन विभाग पर सवाल खड़ा करता है. बिहार के विक्रमशिला डाॅल्फिन अभयारण्य की तर्ज पर साहिबगंज में भी गंगा डॉल्फिन अभयारण्य बनाए जाने की मांग लगातार होती रही है, लेकिन प्रशासन इसकी सुध नहीं ले रहा है. यह अभयारण्य फाइलों में सिमट कर रह गया है. राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित होने के बाद गंगा में पाए जाने वाली जलीय जीव को सुरक्षित रखने में जिला प्रशासन फेल साबित हुई है.

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दोषियों पर कार्रवाई करने की जरूरत

पर्यावरण विद का कहना है कि डॉल्फिन की मौत चिंताजनक है. डॉल्फिन की हत्या की गई है, जो वातावरण के साथ खिलवाड़ हुआ है, दोषियों पर कार्रवाई करने की जरूरत है. जिला प्रशासन को भी इस दिशा में जागने की जरूरत है, तभी जलीय जीव डॉल्फिन सुरक्षित रह सकती है.

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मछुआरे के जाल में फंसने से डाॅल्फिन की मौत

10 फरवरी 2021 को झारखंड-बंगाल सीमा के पास कामरटोला के नजदीक नाव घाट में मृत डॉल्फिन को देखा गया. 18 दिसंबर 2020 को राजमहल के कसवा गांव के पास गंगा तट से करीब 35 किलो की मृत डाॅल्फिन विभाग ने बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा था. इसके साथ ही विभाग डाॅल्फिन के मृत होने के कारण का भी अनुसंधान कर रहा है. डाॅल्फिन के शिकार या मृत मिलने की घटना नई नहीं है. जिले में जुलाई 2016 महाराजपुर, जनवरी 2018 उधवा बंगमगंज और फरवरी 2018 में एक मछुआरे के जाल में फंसने से डाॅल्फिन की मौत हो गई थी. विलुप्त प्रायः जीव डाॅल्फिन झारखंड में एकमात्र जिला साहिबगंज में बहने वाली गंगा में असुरक्षित होती प्रतीत हो रही है.


मेरी डाॅल्फिन नामक कार्यक्रम का संचालन

गंगा में इन दिनों जिस तरह से यंत्र चालित नाव से होने वाले शोर-शराबे और अन्य मानवीय गतिविधियां हो रही हैं, वे डाॅल्फिन के विलुप्त होने में अग्रणी भूमिका निभा रही है. वहीं सूत्रों की माने तो घुटनों के दर्द में डाॅल्फिन का तेल रामबाण है. भारत में 2012 में मेरी गंगा, मेरी डाॅल्फिन नामक कार्यक्रम का संचालन हुआ, लेकिन डाॅल्फिन को लेकर कोई सर्वे न होने से साहिबगंज की गंगा में डाॅल्फिन की संख्या अज्ञात है. बिहार के सुल्तानगंज से कहलगांव तक के करीब 60 किमी में विक्रमशिला डाॅल्फिन अभयारण्य की तर्ज पर साहिबगंज के मिर्जाचैकी से फरक्का करीब 91 किमी में फैली गंगा को डाॅल्फिन अभयारण्य घोषित कर संरक्षण की मांग लंंबे समय से की जा रही है, लेकिन यह सिर्फ फाइलों में सिमट कर रह गया है.

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