रांचीः विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर एक बार फिर धर्म कोर्ड चर्चा में है. आदिवासियों का कहना है कि जब अंग्रेजी शासन काल में अलग कॉलम दिया गया था तो आजाद भारत में भी आदिवासियों के लिए कॉलम होना चाहिए. इस मौके पर भले ही बड़े आयोजन ना हो लेकिन उनकी मांग का शोर पुरजोर होने के आसार हैं.
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पूरी दुनिया में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इसके लिए आदिवासी समाज ने तैयारियां भी शुरू कर दी है. विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर तमाम आदिवासियों संगठनों के द्वारा आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड यानी सरना धर्म कोड की मांग को लेकर जोरों से आवाज उठेगी. लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के कारण बड़े सामाजिक आयोजन नहीं हो पाएगा.
झारखंड में इस बार विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर अलग धर्म कोड की मांग उठेगी. क्योंकि लंबे समय से झारखंड के आदिवासियों के द्वारा संघर्ष किया जा रहा है. आदिवासियों को एक अलग पहचान मिल सके, जिससे उनके समुदाय का विकास हो. इसके अलावा जनगणना प्रपत्र में अलग कॉलम की भी मांग है. इसको लेकर दलील है कि अंग्रेजों के शासन काल में आदिवासियों के उद्धार और विकास के लिए जनगणना में अलग कॉलम निहित किया गया था. लेकिन आजाद भारत में आदिवासियों के लिए कोई भी कॉलम नहीं रखा गया है.
आदिवासी समुदाय को आजाद भारत से पूर्व कहीं ना कहीं आदिवासियों के नाम पर ही जनगणना में स्थान दिया गया है. केंद्रीय धुमकुड़िया समिति के अध्यक्ष की मानें तो आदिवासी पूरे भारतवर्ष में रहने वाले आदिवासियों का बोध किया जाता है. इसलिए सभी आदिवासियों के लिए आदिवासी धर्म कोर्ड की मांग बेहद जरूरी है.
आदिवासी समाज से जुड़े लोगों का कहना है कि जनगणना कॉलम में पूरे भारतवर्ष में आदिवासी अनुसूचित जनजाति के लिए आदिवासी धर्म के नाम से धर्म कोड आवंटित किया जाएं. जिससे हमारी धार्मिक पहचान भी बने रहे और आदिवासियों के लिए अलग से बजट तैयार हो सके. केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि लंबे समय से आदिवासी धर्म कोड जानी सरना धर्म कोड की मांग उठ रही है. राज्य सरकार ने धर्म कोड का प्रस्ताव झारखंड विधानसभा से पारित कर केंद्र सरकार को भेज दिया है. केंद्र सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है.