रांची:विश्व अस्थमा दिवस 3 मई को यानी आज पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है. वायु प्रदूषण की वजह से स्वास्थ्य और सांस संबंधी समस्याओं को लेकर रांची में कार्यशाला का आयोजन हुआ. यह आयोजन एशियन मेडिकल स्टूडेंट एसोसिएशन (Asian Medical Student Association AMSA) और साउथ एशियन मेडिकल स्टूडेंट एसोसिएशन (South Asian Medical Student Association SMSA) द्वारा समर्थित स्विचऑन फाउंडेशन की ओर से 'वायु प्रदूषण से अस्थमा' विषय पर किया गया.
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रांची और गिरिडीह में किए गए सर्वे का रिजल्ट:कार्यशाला में बाहरी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले रांची और गिरिडीह के 1200 लोगों के नमूने पर आधारित सर्वेक्षण के नतीजे भी जारी किए गए. सर्वे का रिजल्ट बताता है कि कैसे वायु प्रदूषण स्वास्थ्य पर बेहद खराब असर डाल रहा है. सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि लगभग 46 फीसदी बच्चों में खांसी, श्वसन समस्या वाले लक्षण और 43% बच्चों के गले में खराश के लक्षण दिखाई दिए. जबकि, लगभग 57% बुजुर्ग में श्वसन संबंधी बीमारियों के पुराने और तीव्र दोनों तरह लक्षण दिखाई दिए. वहीं, 48% बुजुर्गों को खांसी के साथ सीने में बेचैनी और अन्य समस्याओं के बारे में शिकायत की.
रांची की अपेक्षा गिरिडीह की स्थिति ज्यादा खराब: विभिन्न वायु प्रदूषण संबंधी बीमारियों से पीड़ित नमूने का अनुपात रांची की तुलना में गिरिडीह में अधिक मिला है. गिरिडीह के 61% उत्तरदाताओं ने छींकने से पीड़ित होने की बात कही, जबकि रांची से 36% उत्तरदाताओं ने ही छींक से पीड़ित होने की पहचान की है. बुजुर्ग समुदाय में गिरिडीह के 70 फीसदी और रांची के 20 फीसदी लोगों ने आराम करते समय भी सांस फूलने से पीड़ित होने की बात सर्वे में की है. गिरिडीह के 61 वर्ष से अधिक आयु के उत्तरदाताओं में 78% सीने में तकलीफ से पीड़ित हैं, जबकि रांची में यह आंकड़ा केवल 32% का था.
स्वीपर सबसे अधिक प्रभावित: वायु प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियों को लेकर सर्वे रिपोर्ट बताती है कि विभिन्न व्यावसायिक समूहों में देखें तो स्ट्रीट क्लीनर या स्वीपर सबसे अधिक असुरक्षित हैं. उसके बाद निर्माण श्रमिक हैं. सर्वे के दौरान स्ट्रीट क्लीनर में 37 फीसदी और कंस्ट्रक्शन वर्कर्स में 22 फीसदी ने चलते समय सांस फूलने की शिकायत बताई है. स्ट्रीट क्लीनर में 53 फीसदी और कंस्ट्रक्शन वर्कर्स में 48 फीसदी ने नाक बंद होने की शिकायत की है. स्ट्रीट वेंडर्स और ड्राइवरों ने भी इसी तरह की स्वास्थ्य समस्याओं की शिकायत की है. इस समूह को बिना किसी गलती के जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर होते हैं.
बच्चों में बढ़ रहा अस्थमा: वायु प्रदूषण से होने वाली विभिन्न बीमारियों में अस्थमा और सीओपीडी दो बीमारियां हैं जो बड़ी संख्या में आबादी को प्रभावित करती हैं. जबकि अस्थमा किसी भी उम्र में हो सकता है और सीओपीडी बुजुर्गों की बीमारी है. इन दो रोगों के लिए जैविक मार्ग, नैदानिक अभिव्यक्तियां, उपचार और रोग का निदान अलग-अलग है लेकिन, ये दोनों महत्वपूर्ण रुग्णता और मृत्यु दर के कारण हैं. चूंकि अस्थमा के सबसे बड़े पीड़ित बच्चे हैं और यह लगातार बढ़ रहा है, यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है.
वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बनया जाए कानून:सर्वेक्षण निष्कर्षों ने एनसीएपी के तहत शहर की स्वच्छ वायु कार्य योजना के कार्यान्वयन की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया, लोगों को जहरीले उत्सर्जन से बचाने के लिए कारखानों और खुली खदानों में प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों का उचित प्रवर्तन लागू किया जाना चाहिए. विशेषज्ञों ने वायु प्रदूषण और अस्थमा विषय पर अपने अपने विचार भी साझा किया. स्विचऑन फाउंडेशन ने अपनी जागरुकता पहल के एक हिस्से के रूप में बाहरी श्रमिकों पर किए गए वायु प्रदूषण आधारित स्वास्थ्य सर्वेक्षण निष्कर्षों को चिंताजनक बताते हुए वक्ताओं ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि कठोर कानून बनाकर और उसका पालन कराकर वायु प्रदूषण को कम किया जाए.
आंकड़े कर रहे खतरनाक स्थिति की ओर इशारा:रिम्स के प्रिवेंशन एंड सोशल मेडिसिन विभाग के डॉ. देवेश कुमार ने कहा कि रांची और गिरिडीह के आसपास के क्षेत्रों से बाहरी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली आबादी के विभिन्न समूहों के सर्वेक्षण डेटा एक खतरनाक लक्षण स्थापित करते हैं. इनमें से कई लक्षण प्रकृति में अत्यधिक एलर्जी वाले होते हैं, जैसे नाक के लक्षण, खांसी और सीने में तकलीफ. ऐसे लक्षण अस्थमा के पूर्वसूचक हैं, क्योंकि वायु प्रदूषण से एलर्जी की संवेदनशीलता बढ़ जाती है.
सर्वेक्षण के निष्कर्षों का अनावरण करते हुए डॉ. निशीथ कुमार, कंसल्टेंट रेस्पिरेटरी मेडिसिन एंड इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी चेस्ट केयर सेंटर और आर्किड मेडिकल सेंटर रांची ने कहा कि प्रदूषित पर्यावरणीय जोखिम और स्वास्थ्य की स्थिति के बीच एक निश्चित संबंध है. वर्तमान निराशाजनक परिदृश्य को देखते हुए, बार-बार फेफड़े के परीक्षण का विकल्प चुनना उचित है, विशेष रूप से निर्माण, कारखाने के श्रमिकों, ड्राइवरों, खनिकों और बुजुर्गों के बीच अधिक कमजोर आबादी के लिए यह अवरोधक और प्रतिबंधात्मक फेफड़ों की बीमारियों का तुरंत पता लगाने और उनका इलाज करने में मदद कर सकता है.
स्विचऑन फाउंडेशन के एमडी विनय जाजू ने कहा कि कमजोर समुदाय, बच्चे, बुजुर्ग आबादी वायु प्रदूषण के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं. उन्होंने कहा कि हमें क्षेत्रों में उचित और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए सख्त कार्रवाई के साथ शहर की स्वच्छ वायु कार्य योजना को लागू करना है. उन्होंने आगे कहा, "प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों को बढ़ावा देने और हमारी वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिए स्वच्छ वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कई एजेंसियों को एक साथ काम करने की तत्काल आवश्यकता है.