रांची: एक वक्त में एशिया का सबसे बड़ा कारखाना कहा जाना वाला एचईसी आज बदहाली के कगार पर जा चुका है. इसमें लगे बड़े-बड़े करोड़ों की मशीन दिखावे के लिए रह गए हैं. क्योंकि इस मशीन को चलाने वाले मजदूर लाचार और बेबस हो चुके हैं. क्योंकि कारखाना में काम करने वाले कामगारों को कई महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है. जिस वजह से मजदूर आर्थिक तंगी का शिकार हो रहे हैं.
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रांची के एचईसी में उत्पादन कार्य बंद होने से फैक्ट्री के साथ-साथ कामगारों का हाल बेहाल है. मजदूर बताते हैं कि वेतन नहीं मिलने से मजदूर काम करना नहीं चाहते. कुछ माह पहले भी 36 दिन के टूल डाउन स्ट्राइक पर मजदूर गए थे. जिसके बाद प्रबंधन ने आश्वासन दिया था कि सभी मजदूरों का वेतन रेग्यूलर कर दिया जाएगा. लेकिन जैसे ही मजदूर काम पर लौटे कि परिस्थिति वही ढाक के तीन पात हो गए. एचईसी में काम करने वाले मजदूरों ने कहा कि अगर एचईसी प्रबंधन और भारी उद्योग मंत्रालय मिलकर एचईसी को दोबारा खड़ा करने का प्रयास नहीं करते हैं तो आने वाले समय में मजदूर फिर से अनिश्चितकालीन टूल डाउन हड़ताल पर जाएंगे. ऐसे में अगर जरूरत पड़ी तो रांची से दिल्ली तक अपनी आवाज बुलंद करेंगे.
भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री रमाशंकर बताते हैं कि जब भी हड़ताल होता है तो मजदूरों को एक माह का वेतन देकर अश्वासन दे दिया जाता है. भोले भाले मजदूर मजबूरी में काम पर लौट जाते हैं फिर उनका वेतन को रोक दिया जाता है. मजदूर नेता रमाशंकर बताते हैं कि एक वक्त था जब कारखाने में भरपूर उत्पादन होता था, जिससे फैक्ट्री को आर्थिक लाभ भी होता था. लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों से कारखाने में उत्पादन पूरी तरह से ठप है. जिस वजह से कारखाने को आर्थिक लाभ नहीं हो पा रही है और इसका खामियाजा लाचार और मजबूर कामगारों को भुगतना पड़ रहा है. मजदूर नेता भवन सिंह ने बताया कि एचईसी के तीनों में से दो यूनिट में 80 प्रतिशत उत्पादन बंद है. जिस कारण एचईसी घाटे में है.
पिछले चार वित्तीय वर्ष से एचईसी घाटे में चल रही है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के समाप्ति के बाद एचईसी ने भारी उद्योग मंत्रालय को भेजी गयी अपनी रिपोर्ट में 235 करोड़ का घाटा बताया था. वहीं मिली जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2020-21 में एचईसी को 175 करोड़ का घाटा हुआ था. वहीं 2019-20 में एचईसी को 405 करोड़ का घाटा हुआ था और वर्ष 2018-19 में एचईसी को करीब 94 करोड़ का घाटा हुआ था.