रांची: लैंड स्कैम और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी और सीएम के बीच चल रहे खींचतान पर विराम लग गया है. इसकी शुरुआत 8 अगस्त 2023 को हुई थी, जब ईडी ने पहला समन जारी कर सीएम को पूछताछ के लिए 14 अगस्त को बुलाया था. फिर एक के बाद एक समन जारी करने का जो सिलसिला शुरु हुआ, उसपर पांच माह बाद विराम लगा. 8वें समन पर सीएम ने आखिर हामी भर दी. उन्होंने कह दिया कि ईडी की टीम 20 जनवरी को उनके आवास पर आकर बयान ले सकती है. अब सवाल है कि आखिर सीएम ईडी के सात समन को क्यों टालते रहे. वह क्यों कहते रहे कि उनको जानबूझकर परेशान किया जा रहा है. वह समन को गैरकानूनी क्यों बताते रहे. आखिर पांच माह में ऐसा क्या हो गया कि सीएम पूछताछ के लिए तैयार हो गये.
वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्रा का कहना है कि सीएम को तो झुकना ही था. लीगल एडवाइज के आधार पर ही उन्होंने ऐसा फैसला लिया होगा. उनको बता दिया गया होगा कि आप इसको और नहीं टाल सकते हैं. ईडी के पास अधिकार है कि वह सब्जेक्ट बताकर कानूनी कार्रवाई कर सकती है. अगर ईडी कोर्ट में मूव करती, तब भी वह बाध्य हो जाते. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का भी रास्ता बंद हो चुका है. ईडी ने यहां तक कह दिया था कि आप खुद जगह तय करें.
वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्रा का मानना है कि सीएम पांच माह तक टाइम बार्गेनिंग करने में जरुर सफल रहे. वह भी देखना चाह रहे थे किस स्तर तक ईडी जाती है. अब 20 जनवरी को सीएम हेमंत से पूछताछ के बाद दो चीजें हो सकती हैं. एक तो ईडी उनके बयान को आधार बनाकर कोर्ट में मूव कर सकती है. इसके बाद सीएम पर सरेंडर करने का खुद ब खुद दबाव बन जाएगा. तब यहां राजनीतिक संकट वाली स्थिति पैदा होगी. यह समझते हुए ही सीएम ने गांडेय सीट को खाली करा रखा है. वहीं भाजपा चाहेगी कि राष्ट्रपति शासन लग जाए और सीएम को विक्टिम कार्ड खेलने का मौका ना मिले. यही वजह है कि बाबूलाल मरांडी राज्यपाल से मिलकर आग्रह कर चुके हैं कि एक साल से कम अवधि बचने पर उपचुनाव कराना गैर कानूनी होगा.
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी का कहना है कि पीएमएलए एक्ट में साफ तौर पर कहीं नहीं लिखा गया है कि कितने समन के बाद किसी को गिरफ्तार किया जा सकता है. इसका फायदा सीएम हेमंत सोरेन ने उठाया. लेकिन पांच माह बाद उन्होंने ईडी को फेस करने का जो मन बनाया है, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. एक तो देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. झारखंड में हेमंत सोरेन कांग्रेस और राजद के सहयोग से सरकार चला रहे हैं. इसलिए लोगों में एक परसेप्शन बन रहा है कि आखिर सीएम ईडी से भाग क्यों रहे हैं. इसका दबाव झामुमो से ज्यादा कांग्रेस पर पड़ रहा था. क्योंकि सीएम हेमंत को लगता होगा कि अगर ईडी उनको गिरफ्तार करती है तो उनका कोर वोटर उनके साथ और मजबूती से संगठित हो जाएगा. लेकिन कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर इसका नुकसान होगा.
उन्होंने कहा कि भाजपा बताएगी कि कांग्रेस क्यों इस सरकार को सपोर्ट करती रही. अमित तिवारी का कहना है कि भारत में इतिहास रहा है कि जेल जाने वाले नेताओं का कद बढ़ा है. लालू यादव इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. इसलिए हेमंत सोरेन भी अपना पॉलिटिकल कार्ड खेल रहे हैं. क्योंकि वह बखूबी जानते हैं कि आरोप लगाने से कुछ नहीं होता. जमीन घोटाला में उनकी भागीदारी साबित करने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा.
ईडी के 7वें समन ने मचाई थी खलबली:सातवें समन में ईडी ने ईसीआईआर नं. RNZO/25/2023 का हवाला देते हुए कहा था कि रांची के बड़गाई अंचल के राजस्व कर्मी रहे भानु प्रताप प्रसाद समेत अन्य मामले में पता चला है कि सरकारी दस्तावेज में छेड़छाड़ हुई है. जमीन की अवैध तरीके से खरीद-बिक्री हुई है. लिहाजा, पीएमएलए, 2002 के सेक्शन-50 के तहत आपसे जुड़ी संपत्ति के मामले में आपका बयान दर्ज करना जरुरी है. अगर आप इस मामले में सहयोग नहीं करते तो माना जाएगा कि जानबूझकर जांच को प्रभावित कर रहे हैं. साथ ही एजेंसी ने यहां तक कह दिया था कि आप खुद जगह बताएं जहां आपका बयान रिकॉर्ड हो सके.