रांची:26 फरवरी से विधानसभा का बजट सत्र शुरु होने वाला है. लेकिन अब तक बाबूलाल मरांडी के बीजेपी विधायक दल के नेता को लेकर विधानसभा अध्यक्ष के न्यायधिकरण मामला लंबित है. लिहाजा इस बार भी विधानसभा का सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के ही चलेगा.
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कैसे फंसा पेंच
दरअसल, विधानसभा चुनाव 2019 में बाबूलाल की पार्टी जेवीएम को तीन सीटें मिली.. चुनाव के बाद बाद बाबूलाल मरांडी ने अमित शाह की मौजूदगी में अपनी पार्टी जेवीएम का विलय बीजेपी में करा दिया, और उन्हें बीजेपी विधायक दल का नेता घोषित किया गया. लेकिन उनकी पार्टी के दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की बीजेपी में नहीं गए. ये दोनों विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए. प्रदीप यादव विधायक दल के नेता थे, लिहाजा उन्होंने दावा किया कि जेवीएम का विलय कांग्रेस में हुआ है. पेंच यहीं फंस गया. वैसे तो चुनाव आयोग ने मान लिया है कि जेवीएम का बीजेपी में विलय हो गया है, लेकिन मामला विधानसभा में अटका हुआ है. फिलहाल विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में मामले की सुनवाई हो रही है.
स्पीकर को पत्र
इधर, बीजेपी नेता बिरंची नारायण ने स्पीकर को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को कांग्रेस विधायक मान लें और बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक के रुप में मान्यता दे दें. हालांकि बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी बीजेपी को इस मुद्दे पर सदन की कार्यवाही में किसी तरह का व्यवधान नहीं पहुंचाने का आग्रह किया है. 27 फरवरी यानी शनिवार को भाजपा विधायक दल की बैठक में पार्टी बजट सत्र को लेकर रणनीति बनायेगी. इस बैठक में ही बाबूलाल मरांडी के आग्रह पर निर्णय लिया जायेगा. इसके अलावे बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष बनाने में आ रही अड़चन पर भी बैठक में विकल्प की तलाश की जायेगी.
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कोई दूसरा हो बीजेपी का नेता
सत्तारूढ़ दल कांग्रेस,जेएमएम और राजद द्वारा लगातार बाबूलाल मरांडी को छोड़कर किसी अन्य को नेता प्रतिपक्ष का नाम देने का बीजेपी से मांग करती रही है. कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी ने एक बार फिर बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा है कि क्या बीजेपी के पास बाबूलाल के सिवा कोई और नेता नहीं हैं. बहरहाल राजनीतिक उठापटक के अलावे कानूनी पेंच में कुछ इस तरह उलझ गया है जहां से बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष बनने का रास्ता आसान होता हुआ नहीं दिख रहा है.
ऐसे समझें पूरा मामला