रांची: झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का विवाद सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा है. कानून के जानकार बताते हैं कि दसवीं अनुसूची में विधानसभा अध्यक्ष को अधिकार है कि उन्हें यह तय करना है कि दल का विलय सही है या नहीं है. अर्थात नेता प्रतिपक्ष पर निर्णय विधानसभा अध्यक्ष को ही आखिरकार लेना है. कानून के जानकार बताते हैं कि अभी तक जो कदम विधानसभा अध्यक्ष की ओर से उठाया गया है वह सही है. दलबदल का मामला अध्यक्ष के ट्रिब्यूनल में लंबित है. जब तक उस पर निर्णय नहीं लेंगे तब तक नेता प्रतिपक्ष का विवाद सुलझ नहीं सकता है.
झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व महाधिवक्ता आरएस मजूमदार ने बताया कि अब तक विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा लिए गए फैसले उचित और कानून के दायरे में हैं. उन्होंने कहा कि इस पर निर्णय लेने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को ही है. उन्होंने एक नए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए बताया कि मणिपुर मेघालय विधानसभा में भी इस तरह के मामले देखने को मिला है. विधानसभा में मामला अधिक दिन तक लंबित होने के बाद उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. उसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी 2000 को आदेश दिया है कि इस तरह के मामले में विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है. इस तरह के मामले अधिक दिनों तक विधानसभा अध्यक्ष के पास लंबित रहने के बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बिंदु पर लोकसभा में ही विचार किया जाना चाहिए. इसके लिए लोकसभा को निर्णय लेकर कुछ नियम बनाना चाहिए. उन्होंने यह माना कि अक्सर विधानसभा अध्यक्ष सत्ता दल के होते हैं इसलिए उसमें अधिक समय लग सकता है.