रांचीः इंडस्ट्रियल एरिया को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए सरकार ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का निर्णय लिया था. 2017 में जियाडा और लुधियाना की कंपनी जेवीआर के बीच करार हुआ. 18 महीने में प्लांट तैयार करना था मगर 90 महीने के बाद भी अभी तक कंपनी ने सरकार को वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैंड ओवर नहीं किया है. ऐसे में निर्माण कार्य में लगी कंपनी के कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं.
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केंद्र सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट झारखंड में बनने से पहले ही दम तोड़ रहा है. 2017 में तुपुदाना इंडस्ट्रियल एरिया (Tupudana Industrial Area) में झारखंड का पहला वाटर ट्रीटमेंट प्लांट अब तक पूरा नहीं हो पाया है. कंपनी के कार्यों की निगरानी रखने के लिए सरकार ने एक अन्य कंपनी को भी रखा मगर निर्माण कार्य पूरा होने से पहले ही कंपनी ने झारखंड से नाता तोड़ लिया. अब इस वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण सीधे जियाडा और जेवीआर कंपनी के जिम्मे है.
35 करोड़ की लागत से बन रहा प्लांटः इस वाटर ट्रीटमेंट प्लांट पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 35 करोड़ खर्च होगा. पूर्व में इसकी लागत करीब 24 करोड़ रुपये की थी, बाद में इसकी लागत बढ़ाई गयी. अब तक इस प्लांट पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं. तुपुदाना इंडस्ट्रियल एरिया में बन रहे इस वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का उद्देश्य इंडस्ट्री से निकलने वाले रासायनिक और प्रदूषणयुक्त पानी को रिसाइकिल कर शुद्ध जल में परिवर्तित करना है. इस प्लांट की क्षमता एक दिन में 10 लाख लीटर पानी को प्यूरिफाई करने का है. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट निर्माण कार्य में लगे अधिकारियों की मानें तो प्लांट बनने में हो रही देरी के पीछे कई वजह हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि 3 महीने की टेस्टिंग के बाद इस प्लांट को जियाडा को हैंड ओवर किया जाएगा.
जेवीआर कंपनी के कामकाज पर सवालः जेवीआर कंपनी को जियाडा ने तुपुदाना इंडस्ट्रियल एरिया के सौंदर्यीकरण का जिम्मा दिया गया है. इसके तहत इंडस्ट्रियल एरिया में लाइटिंग और ड्रेनेज की व्यवस्था करनी है. लेकिन पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी ना तो ड्रेनेज का काम पूरा हुआ और ना ही लाइटिंग की कोई व्यवस्था कैंपस में की गयी है. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी आधा अधूरा रहने के कारण इस एरिया में राइस मिल और वाइन फैक्ट्री द्वारा छोड़े जाने वाले रसायनयुक्त जल इलाके में प्रदूषण फैला रहे हैं.
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सामाजिक कार्यकर्ता कामता उपाध्याय ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि 18 महीने के बजाए 5 साल में भी जेवीआर कंपनी निर्माण कार्य पूरा नहीं कर पाई, इसके पीछे क्या वजह है इसे बताना चाहिए और सरकार को कंपनी पर लेटलतीफी के लिए कार्रवाई करनी चाहिए. इस प्लांट के बनने से स्वर्णरेखा नदी होते हुए गेतलसूद डैम में जानेवाला रसायनयुक्त पानी से लोगों को मुक्ति मिलेगी. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के पीछे मकसद इंडस्ट्री द्वारा डिस्चार्जड वाटर को रिसाइकिल कर उपयोगी बनाना है. लेकिन इसका लाभ अब तक लोगों को मिलता नजर नहीं आ रहा है. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए भारी भरकम राशि अब तक खर्च किए जा चुके हैं मगर प्लांट चालू होने से पहले ही जगह-जगह हो रहे रिसाव इस प्लांट की हकीकत बयां कर रही है. आशंका यह जताई जा रही है कि पानी के नाम पर खर्च हो रहा करोड़ों रुपया पानी में ना चला जाए.