रांची: मांडर उपचुनाव के लिए वोटिंग का काम शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गया. अब 26 जून का इंतजार है, जब ईवीएम से नतीजे निकलेंगे. लेकिन चुनाव संपन्न होते ही हार-जीत को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है. सभी के जेहन में एक ही सवाल है कि जीत किसकी होगी. इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है लेकिन सभी अपने-अपने तरीके से आंकलन करने लगे हैं. इस चुनाव में कुल 14 प्रत्याशी हैं. लेकिन चर्चा सिर्फ तीन प्रत्याशियों की हो रही है. सबसे ज्यादा चर्चा में हैं निर्दलीय विधायक देवकुमार धान. क्योंकि भाजपा की गंगोत्री कुजूर और कांग्रेस की नेहा शिल्पी तिर्की के बीच की लड़ाई को उन्होंने ओवैसी के टैग के साथ रोचक बना दिया था. अब सभी इस फॉर्मूले को डी-कोड कर रहे हैं कि क्या धान के पक्ष में अल्पसंख्यकों की गोलबंदी थी. क्योंकि इसी सवाल के जवाब में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी की हार और जीत छीपी हुई है. दरअसल, मांडर में 3.54 लाख वोटर हैं. इनमें सबसे ज्यादा करीब पौने दो लाख वोटर सरना समाज से जुड़े हुए हैं. इसके बाद 70 से 75 हजार के करीब हिन्दू मूलवासी, तीसरे नंबर पर 65 से 70 हजार के करीब मुस्लिम और 25 से 30 हजार के करीब ईसाई वोटर हैं.
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दिनभर चुनाव के दौरान ईटीवी भारत की टीम ने अलग-अलग पॉकेट में वोटरों के मिजाज को टटोलने की कोशिश की. इस क्रम में रांची हिंसा, सहानुभूति और विकास पर आधारित तीन फैक्टर नजर आए. इसके अलावा बंधु तिर्की की लोगों के बीच पकड़, गंगोत्री कुजूर की सादगी और देवकुमार धान के बगावत का तरीका भी चर्चा के केंद्र में रहा. मुस्लिम बहुल चान्हो में कांग्रेस के प्रति नाराजगी दिखी. लोगों का कहना था कि अगर बंधु तिर्की ने अपनी बेटी को बतौर निर्दलीय उतारा होता तो उनको पूरा साथ मिलता. हालाकि मांडर, बेड़ो, लापुंग और इटकी में इस ग्रुप का मिजाज कुछ और ही था. एक अनुमान के मुताबिक मुस्लिम वोट बंटा है लेकिन इसका प्रतिशत 25 से 30 के करीब अनुमानित है. सरना वोट भी कांग्रेस प्रत्याशी और भाजपा प्रत्याशी के बीच बंटा है. इस वोट बैंक में बेड़ो में भाजपा तो मांडर में कांग्रेस की सेंधमारी का अनुमान है. भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में भरपूर सदान वोट मिलने का अनुमान है. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में ईसाईयों का वोट गया है.