रांची: रांची जिले के लापुंग प्रखंड के ककरिया गांव के कुसुम टोली के लोगों की नैया लकड़ी के पुल के सहारे पार हो रही है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. देश को आजाद हुए सात दशक व पंचायती राज व्यवस्था को लागू हुए एक दशक हो गए, लेकिन गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं.
गांव में ना पक्की सड़क है और ना पुलःगांव में आज भी पुल और पक्की सड़क नहीं है. इस कारण ग्रामीणों को कीचड़मय रास्ते से आवागमन करना पड़ता है. गांव से होकर बहने वाली कनकी नदी और सरना गड़ा पर पुल का निर्माण नहीं होने से गांव के लोगों को आवाजाही में काफी दिक्कत होती है. बरसात के दिनों में तो लोग घरों में कैद होकर रह जाते हैं या फिर जान जोखिम में डाल कर नदी पार करते हैं.
जनप्रतिनिधियों ने नहीं ली सुधःकई बार ग्रामीणों ने पुल का निर्माण कराने के लिए अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगाई, लेकिन आश्वासन के सिवा आज तक कुछ नहीं मिला. थक हारकर यहां के ग्रामीणों ने गुरुवार को भाजपा नेता सन्नी टोप्पो के साथ मिलकर श्रमदान कर लकड़ी का पुल और चलने लायक सड़क बनाया. गांव के लोग अब इसी लकड़ी के पुल के सहारे आवागमन कर रहे हैं. इस संबंध में ग्रामीणों ने कहा कि चुनाव के समय नेता आते हैं और बड़े-बड़े वादे कर चले जाते हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते हैं. वहीं मामले में प्रशासन भी सुध नहीं ले रहा है.
भाजपा सत्ता में आई तो ग्रामीण क्षेत्रों का होगा विकास: इस संबंध में भाजपा नेता सन्नी टोप्पो ने कहा कि ककरिया पंचायत के कुसुम टोली में अधिकतर आदिवासी निवास करते हैं, लेकिन आज भी गांव जाने के लिए लकड़ी का पुल ही सहारा है. यह दुख की बात है. झारखंड राज्य इसलिए अलग हुआ कि यहां की आदिवासियों का विकास हो, लेकिन आज भी यहां के ग्रामीणों की समस्या सुनने कोई नहीं आया. यहां के ग्रामीण कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. ग्रामीणों ने श्रमदान कर रोड और पुल का निर्माण खुद किया है. 2024 में राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होगा.
हर साल ग्रामीण आवागमन के लिए बनाते हैं पुलः वहीं इस संबंध में ग्रामीण बसंती लकड़ा कहती हैं हमें प्रतिदिन लकड़ी के पुल से कनकी नदी पार करना पड़ता है. गांव के लोगों के प्रयास से पुल को हर साल बनाया जाता है. पुल नहीं रहने से हमें दूसरे गांव जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी. हालत यह है कि एंबुलेंस भी गांव नहीं आ पाती है. मरीजों को खाट पर उठाकर लकड़ी का पुल पार करना पड़ता है.