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अंतरराज्यीय अफीम तस्कर गिरोह का खुलासा, पुलिस ने महिला समेत 3 को किया गिरफ्तार

रांची पुलिस ने तीन अफीम तस्करों को गिरफ्तार किया है. उनके पास से 3.5 किलो अफीम बरामद किया गया है. जिसकी कीमत लगभग पांच लाख है. गिरफ्तार तस्करों में एक महिला भी शामिल है, जो कि गिरोह की सरगना बतायी जा रही है.

3.5 किलो अफीम के साथ दो तस्कर गिरफ्तार

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Published : Sep 16, 2019, 7:42 AM IST

रांची: झारखंड में अफीम की तस्करी में अब महिलाएं भी शामिल हो गई हैं. रांची पुलिस की टीम ने एक अंतरराज्यीय अफीम तस्कर गिरोह के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया है. पूछताछ में ये खुलासा हुआ है कि गिरोह की सरगना एक महिला है, जो जेल में बंद है और वहीं से अपना कारोबार चला रही है.

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पुलिस ने गिरफ्तार तस्करों के पास से 3.5 किलो अफीम बरामद किया है. तीनों तस्कर अफीम की डिलीवरी हजारीबाग की एक महिला सरगना के लिए करते थे. शनिवार को डिलीवरी से पहले नामकुम में ये तस्कर पकड़े गए. बरामद अफीम की बाजार में कीमत लगभग 5 लाख है.

कैसे हुई गिरफ्तारी
ग्रामीण एसपी आशुतोष शेखर ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि गुप्त सूचना मिली थी कि खूंटी से हजारीबाग अफीम की बड़ी खेप भेजी जा रही है. इस सूचना के बाद खूंटी के नामकुम में मंत्री बस को रोककर तलाशी की गई, जिसमें अफीम के साथ दो तस्करों को गिरफ्तार किया गया. जबकि अंबिका सिंह को हजारीबाग से गिरफ्तार किया गया है. तीनों तस्कर चतरा जिले के पत्थलगड़ा के रहने वाले हैं. जिनमें से लिटे मुंडा और करम मुंडा मौजूदा समय में खूंटी के सालगा में रहते हैं.

कपड़े के बैग में सब्जी बोलकर रखा था अफीम
चेकिंग के दौरान रांची आ रही मंत्री बस को पुलिस ने रोका और तलाशी ली. तलाशी में दोनों युवकों के पास से दो कपड़े के बैग मिले. दोनों से जानकारी लेने पर कहा कि बैग में सब्जी है, लेकिन जब इसकी तलाशी ली गई तो उसमें 3.5 किलो अफीम रखा मिला. गिरफ्तार तस्करों ने बताया कि खूंटी से हजारीबाग पहुंचाने के लिए उन्हें अंबिका छह हजार रूपये देती है. पांच हजार अफीम पहुंचाने के और एक हजार आने-जाने का भाड़ा. उसने बताया कि इससे पहले भी एक बार हजारीबाग में अंबिका को दो किलो अफीम पहुंचाया था.

अफीम रहा है नक्सलियों का अर्थतंत्र
अफीम नक्सलियों का अर्थतंत्र माना जाता है. प्रतिबंधित पोस्ता की खेती और तैयार अफीम की तस्करी में नामकुम और खूंटी का पुराना नाता रहा है. दोनों ही क्षेत्र नक्सल प्रभावित होने के कारण नक्सली और तस्कर ग्रामीणों से मिलकर आसानी से खेती करवाते हैं. तस्कर ग्रामीणों को बीज से लेकर अन्य सुविधा देते हैं.

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