रांची: झारखंड में अलग-अलग विभागों में अनुबंध पर सेवा दे रहे कर्मचारियों को सरकार द्वारा समायोजित कर नियमित किए जाने की योजना की खबर से राज्य के कई आदिवासी संगठन विरोध पर उतर आए हैं. सोमवार को राजधानी रांची में अलग-अलग आदिवासी संगठनों ने संयुक्त रूप से आक्रोश मार्च निकाला और सरकार की इस नीति को आदिवासी मूलवासी विरोधी बताया. इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पुतला फूंका.
ये भी पढ़ें:Ranchi Contractual Nurses Protest: राजभवन के पास अनुबंधित नर्सों ने तोड़ी बैरिकेडिंग, पुलिस से हुई झड़प
इस विरोध मार्च में आदिवासी संगठनों के साथ साथ विश्वविद्यालय के आदिवासी छात्र मोर्चा के नेता भी शामिल थे. जयपाल सिंह स्टेडियम से परम वीर शहीद अल्बर्ट एक्का चौक तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पुतले के साथ आक्रोश मार्च करते हुए आदिवासी संगठनों के नेता झंडे बैनर के साथ अल्बर्ट एक्का चौक पहुंचे और वहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आदिवासी मूलवासी विरोधी बताते हुए उनका पुतला फूंका.
अनुबंधकर्मियों की स्थायीकरण की प्रक्रिया पर रोक की मांग: विरोध कर रहे अलग-अलग आदिवासी संगठन से जुड़े नेताओं ने कहा कि राज्य में जितने भी अनुबंध पर कर्मचारी अभी सेवा दे रहे हैं, उनकी नियुक्ति में सभी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है और ना ही आरक्षण रोस्टर का ध्यान रखा गया है, जितने भी अनुबंधकर्मी हैं, वह यहां के अधिकारियों और नेताओं की पहुंच-पैरवी पर काम कर रहे हैं. ऐसे में अगर उनकी स्थायी नियुक्ति होती है, तो यह झारखंड के आदिवासी और मूलवासी के युवाओं के पेट पर लात मारने जैसा होगा, जिसे किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसलिए कई आदिवासी, पहड़ा और सरना संगठन के लोगों ने संयुक्त रूप से आंदोलन करने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि आज मुख्यमंत्री का पुतला फूंका गया है. अगर सरकार अनुबंधकर्मियों की सेवा स्थायीकरण की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाती तो चरणबद्ध आंदोलन किया जाएगा क्योंकि यह राज्य के आदिवासी और मूलवासी युवाओं के साथ नाइंसाफी होगी.
अनुबंधकर्मियों की स्थायीकरण का विरोध कर रहे हैं आदिवासी:इस आक्रोश मार्च में राज पहरा सरना प्रार्थना सभा, केंद्रीय सरना समिति, झारखंड आदिवासी संयुक्त मोर्चा, राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ, सरना धर्म सोतो समिति खूंटी, केंद्रीय सरना संघर्ष समिति रांची सहित अन्य आदिवासी संगठनों से जुड़े लोगों ने पहले जयपाल सिंह स्टेडियम में महाजुटान किया और उसके बाद वहां से आक्रोश मार्च के रूप में अल्बर्ट एक्का चौक पहुंचे. अल्बर्ट एक्का चौक पर सरकार का पुतला दहन करने के बाद आक्रोशित आदिवासी नेताओं ने कहा कि वर्तमान सरकार एक ओर जहां आदिवासी और मूलवासी के हितों और उनके अधिकारों की रक्षा की बात करती है तो दूसरी ओर राज्य में हजारों की संख्या में अनुबंधित कर्मचारियों को स्थायी करने की योजना बना रही है, जिसे राज्य के आदिवासी समाज किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे.
आदिवासी मूलवासी की नौकरी छीनने की साजिश: शनिवार को राष्ट्रीय आदिवासी सरना समाज धर्म रक्षा अभियान की एक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि राज्य में सरकार द्वारा अनुबंध कर्मियों को स्थायी करने की योजना का चरणबद्ध तरीके से विरोध किया जाएगा और उसी निर्णय के अनुसार सोमवार को राजधानी रांची में इसकी शुरुआत मशाल जुलूस से हुई है. प्रदर्शनकारी हेलम उरांव ने अनुबंधित कर्मियों की सेवा स्थायी करने की नीति को बैकडोर से आदिवासी मूलवासी की नौकरी छीनने की साजिश बताते हुए कहा कि राज्य में डेढ़ लाख से अधिक पदों का बैकलॉग है, जिसपर अभी अनुबंध और आउटसोर्सिंग से बाहरी लोग काम कर रहे हैं. अब इन्हें ही स्थायी करने की योजना बनाई है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. आंदोलित संगठनों ने राज्य में 100 फीसदी बहाली आदिवासी मूलवासियों को देने की मांग की. वहीं केंद्रीय सरना संघर्ष समिति के अध्यक्ष शिवा कच्छप ने कहा कि वर्तमान सरकार हड़बड़ी में कोई फैसला नहीं ले और अनुबंधकर्मियों की सेवा स्थायी न करें क्योंकि उनकी नियुक्ति नियमों का पालन करते हुए नहीं हुई है.
रांची में एक ही दिन दो बड़े आंदोलन: झारखंड में 16 जनवरी का दिन, एक ऐसा दिन रहा जब रांची दो-दो बड़े आंदोलन का गवाह बना है. एक ओर जहां राज्यभर की अनुबंधित नर्सो ने सेवा स्थायी करने की मांग के साथ आंदोलन किया तो दूसरी ओर अनुबंधकर्मियों के स्थायीकरण के लिए सरकार द्वारा योजना बनाए जाने की खबर भर से विभिन्न आदिवासी संगठन सड़क पर उतर गए और अनुबंधकर्मियों की किसी भी स्थिति में सेवा स्थायी नहीं करने की मांग के साथ मुख्यमंत्री का पुतला फूंका.
क्यों आंदोलित हैं आदिवासी संगठन: दरअसल, हेमंत सोरेन की सरकार ने राज्य के सभी विभागों में 10 वर्ष से अधिक समय से अनुबंध पर सेवा दे रहे कर्मियों की सूची मांगी है. ऐसे में आदिवासी संगठनों को लग रहा है कि सरकार में शामिल दल अपने चुनावी घोषणापत्र के अनुसार इनका समायोजन करने जा रहे हैं और यह आदिवासी हितों के खिलाफ होगा.