रांचीः जल संकट से जूझ रहे प्रदेश के लोगों को भूतल जल को बचाना होगा. तभी जाकर इस समस्या का समाधान निकल कर सामने आएगा. दरअसल पिछले कुछ सालों से भूगर्भ जल पर निर्भरता लोगों के लिए संकट का कारण बन रहा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में भूगर्भ जल पर निर्भरता कभी भी धोखा दे सकती है. यहां पानी पत्थरों के 'क्रैक और फिशर्स' में मौजूद हैं. अन्य राज्यों की तरह यहां मिट्टी की लेयर चौड़ी नहीं है. हर हाल में तालाबों, नदियों और डैम को बचा कर रखना होगा.
इस बाबत पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि तालाब और छोटी नदियां लाइफ लाइन हैं. इन्हें बचाए बिना भविष्य में पानी बचाना संभव नहीं होगा. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि राजधानी के आसपास बने डैम में सिल्ट की सफाई अभी तक नहीं हुई है. वहीं, केचमेंट एरिया भी नहीं बढ़ाया गया है. इसे बढ़ाकर पानी संग्रहण और बढ़ाई जा सकती थी. उन्होंने कहा कि दरअसल नई-नई इमारतों के निर्माण के साथ जमीन का कच्चा हिस्सा पक्का होता जा रहा है. इस वजह से भी पानी की समस्या विकराल रूप ले रही है. उन्होंने कहा कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग कितना सफल होगा ये तो आने वाला समय बताएगा. सबसे जरूरी है सर्फेस वाटर को बचा कर रखना.
हालांकि जल संकट से निपटने के लिए राजधानी में नगर निगम की तरफ से पानी के टैंकर शहर के अलग-अलग इलाकों में लोगों को पानी पहुंचा रहे हैं. वहीं, पानी भी राजधानी के अलग-अलग डीप बोरिंग से निकालकर लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के मंत्री रामचंद्र सहिस मानते हैं कि लोगों को शुद्ध और साफ पेयजल पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है.
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