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रांची में भी निपाह वायरस का खतरा! केरल से ट्रेन कनेक्शन बन सकता है कारण, वीआईपी इलाके में हैं हजारों चमगादड़

केरल में निपाह वायरस से संक्रमित दो मरीजों की मौत हो चुकी है. कुछ इलाके को कंटेनमेंट जोन बनाकर वहां पर सावधानी बरती जा रही है. केरल से दो ट्रेन झारखंड आती है, ऐसे में क्या झारखंड या रांची में भी इस वायरस का खतरा मंडरा रहा है?

Nipah virus in Jharkhand
Nipah virus threat in Ranchi

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 16, 2023, 8:47 PM IST

रांची: केरल में निपाह वायरस से संक्रमित दो लोगों की मौत हो चुकी है. चार संक्रमित हैं. मरने वालों के सीधे संपर्क में आए 15 लोगों को हाई रिस्क की कैटेगरी में रखा गया है. हालांकि आईसीएमआर की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि केरल में निपाह क्यों फैलता है. लेकिन यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि इस वायरस से संक्रमित होने पर मृत्यु की संभावना 40 से 70 प्रतिशत तक रहती है. जाहिर है कि यह बेहद घातक है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जार्ज ने बताया है कि यह बांग्लादेशी वेरिएंट है. यह इंसानों से इंसानों में फैलता है. लिहाजा, कोझिकोड के संक्रमित ग्राम पंचायतों को क्वारंटाइन जोन में तब्दील कर दिया गया है.

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इसको देखते हुए केरल के पड़ोसी राज्य कर्नाटक ने आम जनता को प्रभावित इलाकों में सफर करने से बचने की सलाह दी है. ऐसे में झारखंड को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इसकी वजह है झारखंड का केरल से ट्रेन कनेक्शन. साथ ही इस वायरस के संक्रमण में चमगादड़ों के वाहक बनने की संभावना रांची को डेंजर जोन में डाल सकती है. लिहाजा, सवाल उठता है कि इन संभावनाओं को देखते हुए पशुपालन और स्वास्थ्य विभाग के अलावा रांची रेल मंडल क्या कर रहा है.

रांची के वीवीआई इलाके में है चमगादड़ों का बसेरा:आपको जानकर हैरानी होगी कि रांची के वीवीआईपी इलाके के एक पार्क में हजारों की संख्या में चमगादड़ों का बसेरा है. मोरहाबादी मैदान में मौजूद उस पार्क में रेस्टूरेंट तक चलता है. लोग घूमने जाते हैं. इसी इलाके में रांची के उपायुक्त, राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन का आवास है. इसके अलावा फुटबॉल और हॉकी स्टेडियम की वजह से बड़ी संख्या में खिलाड़ी यहां पहुंचते हैं. साथ ही पार्क के बिल्कुल करीब रांची और श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के अलावा स्टेट गेस्ट हाउस भी है. सुबह के वक्त बड़ी संख्या में लोग मोरहाबादी में टहलने आते हैं. लेकिन शायद ही किसी की नजर पार्क में मौजूद विशालकाय यूकेलिप्टस की डालियों पर झूलते बड़े बड़े चमगादड़ों पर पड़ती है. यह बेहद खौफनाक दिखते हैं. पूरा पार्क इनके मुंह से निकले सलाइवा से बदबू देता है.

सावधान! झारखंड से दो ट्रेनें जातीं हैं केरल:दरअसल, झारखंड से दो ट्रेनें केरल जाती हैं. एक ट्रेन धनबाद से रांची होते हुए केरल के एल्लपी/अल्लपूझा और दूसरी ट्रेन हटिया से एर्णाकुलम के लिए चलती है. इस ट्रेन से बड़ी संख्या में लोग केरल आना-जाना करते हैं. बड़ी संख्या में मजदूर भी केरल में काम करने जाते हैं. लिहाजा, संक्रमण के लिहाज से यह झारखंड के लिए भी चिंता का विषय है. इस मसले पर रांची रेल मंडर के सीनियर डीसीएम निशांत कुमार से ईटीवी भारत ने बात की. उन्होंने प्रश्न का स्वागत करते हुए कहा कि वह अपने स्तर से इस बात को आलाधिकारियों तक जरूर पहुंचाने की कोशिश करेंगे. उन्होंने बताया कि अभी तक रेलवे की तरफ से इसको लेकर कोई एडवाइजरी नहीं आई है जैसा कोरोना संक्रमण के समय आया करती थी. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस मसले पर केरल में प्रशासनिक स्तर पर जरूर पहल की जा रही होगी.

चमगादड़ों पर नजर रखने की है जरूरत:पर्यावरणविद डॉ नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि चमगादड़ भी कई बीमारियों के कैरियर होते हैं. चिंता की बात है कि मोराबादी मैदान में बहुत दूर तक चमगादड़ उड़ान भरते दिखते हैं. इंसान के बीच इस कदर इनका रहना अच्छा नहीं माना जा सकता क्योंकि चमगादड़ों के काटने पर एंटी रेबिज वैक्सीन की जरूरत पड़ती है. लिहाजा, अलर्ट रहने की जरूरत है. अगर निपाह वायरस के संक्रमण को फैलाने में चमगादड़ सोर्स हो सकते हैं तो इनपर नजर रखना होगा. राज्य के पशुपालन विभाग को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कोविड के वक्त भी लोगों ने इसे हल्के में लिया था लेकिन सेकेंड वेव में उस वायरस ने तबाही मचा दी थी. उस घटना से सीख लेने की जरूरत है. रेलवे को भी एहतियाती कदम उठाना चाहिए क्योंकि झारखंड से केरल के लिए ट्रेनों का परिचालन होता है.

क्या कर रहा है स्वास्थ्य और पशुपालन विभाग:राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरूण कुमार सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि इस बीमारी को लेकर केंद्र से कोई कम्यूनिकेशन नहीं हुआ है. इसके बारे में और जानकारी ली जा रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र और केरल सरकार से जानकारी लेने के बाद बचाव से जुड़े जो भी उपाए हो सकते हैं, उसका अनुपालन सुनिश्चित कराया जाएगा.

वहीं झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के महाचिसव डॉ शिव काशी ने बताया कि बेशक चमगादड़ एक कैरियर का काम करता है. उसके शरीर से निकलने वाले ब्लड, फ्लूड से बीमारी फैलती है. यह रेसिपेरेटरी सिस्टम को प्रभावित करता है. सूअर भी इसके वाहक होते हैं. फिलहाल इस बीमारी का सिंप्टोमेटिक ट्रिटमेंट है. वैक्सीन भी नहीं बना है. अभी तक रांची में सूअरों में इस तरह का कुछ नहीं दिखा है. जहां तक चमगादड़ की बात है तो पूर्व में फ्रुट बैट को वाहक माना गया था. फिलहाल, यह देखना पड़ेगा कि मोरहाबादी में मौजूद चमगादड़ फ्रुट बैट की श्रेणी वाले हैं या नहीं. फिर भी इनकी गतिविधि पर नजर रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आपसे मिली जानकारी के आधार पर उस इलाके में सेनिटेशन के अलावा दूसरे बचाव के उपाय शुरू करने के लिए पहल किए जाएंगे.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साल 2004 में बांग्लादेश में कुछ लोग निपाह वायरस की चपेट में आए थे. तब बताया गया था कि खजूर के पेड़ से निकला रस कारण बना था क्योंकि रस तक वायरस को फ्रूट बैट कहे जाने वाले चमगादड़ ले गये थे. हालांकि निपाह का पहला मामला मलेशिया में 1998 में सामने आया था. उस वक्त सुंगई निपाह गांव में वायरस का पता चला था. तब सूअर पालने वाले किसान इससे संक्रमित हुए थे. इसी वजह से इस वायरस को निपाह नाम दिया गया. उसी साल सिंगापुर में भी इस वायरस का पता चला था. अब केरल में इस निपाह वायरस के आने से चिंता बढ़ गई है.

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